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चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र
सार : संक्षेप
प्रकृत अध्ययन का कथानक बहुत रोचक तो है ही, शिक्षाप्रद भी है। पिछले तेरहवें अध्ययन में बतलाया गया है कि सत्गुरु का समागम आदि निमित्त न प्राप्त हो तो जो सद्गुण विद्यमान हैं उनका भी ह्रास
और अन्ततः विनाश हो जाता है। ठीक इससे विपरीत इस अध्ययन में प्रतिपादित किया गया है कि सन्निमित्त मिलने पर अविद्यमान सद्गुण भी उत्पन्न और विकसित हो जाते हैं। अतएव गुणाभिलाषी पुरुष को ऐसे निमित्त जुटाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए जिससे आत्मिक सद्गुणों का ह्रास न होने पाये, प्रत्युत प्राप्त गुणों का विकास हो और अप्राप्त गुणों की प्राप्ति होती रहे। व्यक्तित्व के निर्माण में सत्समागम आदि निमित्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इस तथ्य को कदापि विस्मृत नहीं करना चाहिये। प्रस्तुत अध्ययन में मनोरम कथानक द्वारा तथ्य प्रकाशित किया गया है। कथानक का सार इस प्रकार है
तेतलिपुर नगर के राजा कनकरथ के अमात्य का नाम भी तेतलिपुत्र था। 'मूषिकारदारक' की तरह यह नाम भी उसके पिता तेतलि' के नाम पर रखा गया है। 'मूषिकारदारक' का अर्थ है-मुषिकार का पुत्र । मूषिकारदारक भी तेतलिपुर का ही निवासी स्वर्णकार था। एक बार तेतलिपुत्र अमात्य ने उसकी पुत्री पोट्टिला को क्रीड़ा करते देखा और वह उस पर अनुरक्त हो गया। पत्नी के रूप में उसकी मंगनी की। शुभ मुहूर्त में दोनों का विवाह हो गया।
कुछ समय तक दोनों का दाम्पत्यजीवन सुखपूर्वक चलता रहा। दोनों में परस्पर गहरा अनुराग था। किन्तु कालान्तर में स्नेह का सूत्र टूट गया। स्थिति ऐसी उत्पन्न हो गई कि तेतलिपुत्र को पोट्टिला के नाम से भी घृणा हो गई। पोट्टिला इस कारण बहुत उदास और खिन्न रहने लगी। उसकी निरन्तर की खिन्नता देख एक दिन तेतलिपुत्र ने उससे कहा-तुम चिन्तित मत रहो, मेरी भोजनशाला में प्रभूत अशन, पान, खादिम और स्वादिम . तैयार करवा कर श्रमणों, माहनों, अतिथियों एवं भिखारियों को दान देकर अपना काल यापन करो। पोट्टिला यही करने लगी। उसका समय इसी कार्य में व्यतीत होने लगा।
संयोगवशात् एक बार तेतलिपुर में सुव्रता नामक आर्या का आगमन हुआ। उनका परिवारशिष्यासमुदाय बहुत बड़ा था। उनकी कुछ आर्यिकाएँ यथासमय गोचरी के लिए निकली और तेतलिपुत्र के घर पहुँची। पोट्टिला ने उन्हें आहार-पानी का दान दिया। उस समय उसका पत्नीत्व जागृत हो गया और उसने साध्वियों से निवेदन किया-'मैं तेतलिपुत्र को पहले इष्ट थी, अब अनिष्ट हो गई हूँ। आप बहुत भ्रमण करती हैं और राजा-रंक आदि सभी प्रकार के लोगों के घरों में प्रवेश करती हैं। आपका अनुभव बहुत व्यापक है। कोई कामण, चूर्ण या वशीकरण मन्त्र बतलाइए जिससे मैं तेतलिपुत्र को पुन: अपनी ओर आकृष्ट कर सकूँ।'