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________________ बारहवाँ अध्ययन : उदकज्ञात] [३१९ ४-तएणं से जियसत्तु राया अण्णया कयाइ ण्हाए कयबलिकम्मे जाव अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे बहूहिं राईसर जाव सत्थवाहपभिइहिं सद्धिं भोयणवेलाए सुहासणवरगए विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं जाव [आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे एवं च णं] विहरइ, जिमितभुत्तुत्तराए जाव [आयंते चोक्खे परम] सुईभूए तंसि विपुलंसि असण जाव जायविम्हए ते बहवे ईसर जाव पभिईए एवं वयासी ___ तत्पश्चात् वह जितशत्रु राजा एक बार-किसी समय स्नान करके, बलिकर्म (गृहदेवता का पूजन) करके यावत् अल्प किन्तु बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत करके, अनेक राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि के साथ भोजन के समय पर सुखद आसन पर बैठ कर, विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन जीम रहा था। यावत् जीमने के अनन्तर, हाथ-मुँह धोकर, परम शुचि होकर उस विपुल अशन, पान आदि भोजन (की सुस्वादुता) के विषय में वह विस्मय को प्राप्त हुआ। अतएव उन बहुत-से ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि से इस प्रकार कहने लगा ५-'अहो णं देवाणुप्पिया! मणुण्णे असणं पाणं खाइमं साइमं वण्णेणं उववेए जाव फासेणं उववेए अस्सायणिज्जे विस्सायणिज्जे पीणकणिज्जे दीवणिजे दप्पणिजे मयणिज्जे बिंहणिजे सव्विदिय-गाय-पल्हायणिजे।' _ 'अहो देवानुप्रियो! यह मनोज्ञ अशन, पान, खादिम और स्वादिम उत्तम वर्ण से युक्त है यावत् उत्तम स्पर्श से युक्त है, अर्थात् इसका रूप, रस, गंध और स्पर्श सभी कुछ श्रेष्ठ है, यह आस्वादन करने योग्य है, विशेष रूप से आस्वादन करने योग्य है। पुष्टिकारक है, बल को दीप्त करने वाला है, दर्प उत्पन्न करने वाला है, काममद का जनक है और बलवर्धक तथा समस्त इन्द्रियों को और गात्र को विशिष्ट आह्लाद उत्पन्न करने वाला है।' ६-तए णं ते बहवे ईसर जाव सत्थवाहपभिइओ जियसत्तुं एवं वयासी-'तहेव णं सामी! जंणं तुब्भे वदह। अहो णं इमे मणुण्णे असणं पाणं खाइमं साइमं वण्णेणं उववेए जाव पल्हायणिज्जे।' तत्पश्चात् बहुत-से ईश्वर यावत् सार्थवाह प्रभृति जितशत्रु से इस प्रकार कहने लगे-'स्वामिन्! आप जो कहते हैं, बात वैसी ही है। अहा, यह मनोज्ञ अशन, पान, खादिम और स्वादिम उत्तम वर्ण से युक्त है, यावत् विशिष्ट आह्लादजनक है।' अर्थात् सभी ने राजा के विचार और कथन का समर्थन किया। ७-तएणं जितसत्तू सुबुद्धिंअमच्चं एवं वयासी-'अहोणंसुबुद्धी! इमेमणुण्णे असणं पाणं खाइमं साइमं जाव पल्हायणिज्जे।' तएणं सुबुद्धी जियसत्तुस्सेयमटुंनो आढाइ, जाव [नो परियाणाइ] तुसिणीए संचिट्ठइ। तत्पश्चात् जितशत्रु राजा ने सुबुद्धि अमात्य से कहा-'अहो सुबुद्धि! यह मनोज्ञ अशन, पान, खादिम और स्वादिम उत्तम वर्णादि से युक्त और यावत् समस्त इन्द्रियों को एवं गात्र को विशिष्ट आह्लादजनक है।' तब सुबुद्धि अमात्य ने जितशत्रु के इस अर्थ (कथन) का आदर (अनुमोदन) नहीं किया। समर्थन नहीं किया, वह चुप रहा।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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