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ग्यारहवां अध्ययन : दावद्रव] उवसोभेमाणा चिटुंति।
भगवान् उत्तर देते हैं-हे गौतम! जैसे एक समुद्र के किनारे दावद्रव नामक वृक्ष कहे गये हैं। वे कृष्ण वर्ण वाले यावत् निकुरंब (गुच्छा) रूप हैं। पत्तों वाले, फलों वाले, अपनी हरियाली के कारण मनोहर और श्री से अत्यन्त शोभित होते हुए स्थित हैं।
६-जया णं दीविच्चगा ईंसिं पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति, तदा णं बहवे दावद्दवा रुक्खा पत्तिया जाव चिटुंति।अप्पेगइया दावद्दवा रुक्खा जुन्ना झोडा परिसडियपंडुपत्त-पुष्फ-फला सुक्करुखओ विव मिलायमाणा चिट्ठति।
जब द्वीप संबन्धी ईषत् पुरोवात अर्थात् कुछ-कुछ स्निग्ध अथवा पूर्व दिशा सम्बन्धी वायु, पथ्यवात अर्थात् सामान्यतः वनस्पति के लिए हितकारक या पछाहीं वायु, मन्द (धीमी-धीमी) वायु और महावत-प्रचण्ड वायु चलती है, तब बहुत-से दावद्रव नामक वृक्ष पत्र आदि से युक्त होकर खड़े रहते हैं। उनमें से कोई-कोई दावद्रव वृक्ष जीर्ण जैसे हो जाते हैं, झोड़ अर्थात् सड़े पत्तों वाले हो जाते हैं, अतएव वे खिरे हुए पीले पत्तों, पुष्पों और फलों वाले हो जाते हैं और सूखे पेड़ की तरह मुरझाते हुए खड़े रहते हैं।
७-एवामेव समणाउसो! जे अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा जाव पव्वाइए समाणे बहूणं समणाणं, बहूणं समणीणं, बहूणं सावयाणं, बहूण सावियाणं सम्मंसहइ जावखमइ तितिक्खइ अहियासेइ, बहूणं अण्णउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं नो सम्मं सहइ जाव नो अहियासेइ, एस णं मए पुरिसे देसविराहए पण्णत्ते समणाउसो !
इसी प्रकार हे आयुष्मन् श्रमणो ! हमारा जो साधु या साध्वी यावत् दीक्षित होकर बहुत-से साधुओं बहुत-सी साध्विओं, बहुत-से श्रावकों और बहुत-सी श्राविकाओं के प्रतिकूल वचनों को सम्यक् प्रकार से सहन करता है, यावत् विशेष रूप से सहन करता है, किन्तु बहुत-से अन्य तीर्थिकों के तथा गृहस्थों के दुर्वचन को सम्यक् प्रकार से सहन नहीं करता है, यावत् विशेष रूप से सहन नहीं करता है, ऐसे पुरुष को मैंने देशविराधक कहा है। देशाराधक
८-समणाउसो! जयाणंसामुद्दगा ईसिंपुरेवायापच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति, तया णं बहवे दावद्दवा रुक्खा जुण्णा झोडा जाव मिलायमाणा मिलायमाणा चिट्ठति।अप्पेगइया दावद्दवा रुक्खा पत्तिया पुफिया जाव उवसोभेमाणा चिटुंति।
आयुष्मन् श्रमणो! जब समुद्र सम्बन्धी ईषत् पुरोवात, पथ्य या पश्चात् वात, मंदवात और महावात बहती है, तब बहुत-से दावद्रव वृक्ष जीर्ण-से हो जाते हैं, झोड़ हो जाते हैं, यावत् मुरझाते-मुरझाते खड़े रहते हैं। किन्तु कोई-कोई दावद्रव वृक्ष पत्रित, पुष्पित यावत् अत्यन्त शोभायमान होते हुए रहते हैं।