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________________ २९६] [ज्ञाताधर्मकथा योग्य पुष्पों से पूजा करना। पूजा करके घुटने और पैर नमा कर, दोनों हाथ जोड़कर, विनय के साथ उसकी सेवा करते हुए ठहरना। जब शैलक यक्ष आगत और प्राप्त समय होकर-नियत समय आने पर कहे कि- 'किसको तारूँ, किसे पालूँ' तब तुम कहना–'हमें तारो, हमें पालो।' इस प्रकार शैलक यक्ष ही केवल रत्नद्वीप की देवी के हाथ से, अपने हाथ से स्वयं तुम्हारा निस्तार करेगा। अन्यथा मैं नहीं जानता कि तुम्हारे इस शरीर को क्या आपत्ति हो जायेगी? ३८-तए णं ते मागंदियदारगा तस्स सूलाइयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म सिग्धं चंडं चवलं तुरियं वेइयं जेणेव पुरच्छिमिल्ले वणसंडे, जेणेव पोक्खरिणी, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पोक्खरिणिं गाहंति, गाहित्ता जलमजणं करेंति, करित्ता जाइं तत्थ उप्पलाइं जाव गेहंति, गेण्हित्ता जेणेव सेलगस्स जक्खस्स जक्खाययणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता आलोए पणामं करेंति, करित्ता महरिहं पुष्फच्चणियं करेंति, करित्ता जण्णुपायवडिया सुस्सूसमाणा णमंसमाणा पज्जुवासंति। तत्पश्चात् वे माकन्दीपुत्र शूली पर चढ़े पुरुष से इस अर्थ को सुनकर और मन में धारण करके शीघ्र, प्रचण्ड, चपल, त्वरावाली और वेगवाली गति से जहाँ पूर्व दिशा का वनखण्ड था और उसमें पुष्करिणी थी, वहाँ आये। आकर पुष्करिणी में प्रवेश किया। प्रवेश करके स्नान किया। स्नान करने के बाद वहाँ जो कमल, उत्पल, नलिन, सुभग, आदि कमल की जातियों के पुष्प थे, उन्हें ग्रहण किया। ग्रहण करके शैलक यक्ष के यक्षायतन में आए। यक्ष पर दृष्टि पड़ते ही उसे प्रणाम किया। फिर महान् जनों के योग्य पुष्प-पूजा की। वे घुटने और पैर नमा कर यक्ष की सेवा करते हुए, नमस्कार करते हुए उपासना करने लगे। छुटकारे की प्रार्थना और शर्त | ___३९-तए णं से सेलए जक्खे आगयसमए पत्तसमए एवं वयासी-'कं तारयामि? कं पालयामि?' तए णं ते मागंदियदारया उट्ठाए उडेति, करयल जाव एवं वयासी-'अम्हे तारयाहि। अम्हे पालयाहि।' तए णं से सेलए जक्खे ते मागंदियदारए एवं वयासी–'एवं खलु देवाणुप्पिया! तुब्भे मए सद्धिं लवणसमुद्देणं मझमज्झेणं वीइवयमाणेणं सा रयणद्दीवदेवया पावा चंडा रुद्दा खुद्दा साहिया बहूहिं खरएहि यमउएहि य अणुलोमेहि य पडिलोमेहि य सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि य उपसग्गं करेहिइ।तं जइणं तुब्भे देवाणुप्पिया! रयणद्दीवदेवयाए एयमटुं आढाह वा परियाणह वा अवएक्खह वा तो भे अहं पिट्ठातो विधुणामि। अह णं तुब्भे रयणद्दीवदेवयाए एयमढे णो आढाह, णो परियाणह, णो अवेक्खह, तो भे रयणद्दीवदेवयाहत्थाओ साहत्थिं णित्थारेमि।' ___जिसका समय समीप आया है और साक्षात् प्राप्त हुआ है ऐसे शैलक यक्ष ने कहा-'किसे तारूँ, किसे पालूँ?'
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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