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[ज्ञाताधर्मकथा
किया। स्वीकार करके उन्होंने दक्षिण दिशा के वनखण्ड में जाने का संकल्प किया रवाना हुए। दक्षिण-वन का रहस्य
३२-तए णं गंधे निद्धाति से जहानामए अहिमडेइ वा जाव' अणि?तराए चेव।
तए णं ते मागंदियदारया तेणं असुभेणं गंधणं अभिभूया समाणा सएहिं सएहिं उत्तरिजेहिं आसाइं पिहेंति, पिहित्ता जेणेव दक्खिणिल्ले वणसंडे तेणेव उवागया।
तत्पश्चात् दक्षिण दिशा से दुर्गंध फूटने लगी, जैसे कोई सांप का (गाय का, कुत्ते का, बिल्ली, मनुष्य, महिष, मूषक, अश्व, हस्ती, सिंह, व्याघ्र, भेड़िया या द्वीपिका का) मृत कलेवर हो, यावत् उससे भी अधिक अनिष्ट दुर्गंध आने लगी।
तत्पश्चात् उन माकंदीपुत्रों ने उस अशुद्ध दुर्गन्ध से घबराकर अपने-अपने उत्तरीय वस्त्रों से मुँह ढंक लिए। मुँह ढंक कर वे दक्षिण दिशा के वनखण्ड में पहुँचे।।
___३३–तत्थ णं महं एगंआघायणं पासंति, पासित्ता अट्ठियरासिसतसंकुलं भीमदरिसणिज्जं एगं च तत्थ सूलाइतयं पुरिसं कलुणाई विस्सराई कट्ठाई कुव्वमाणं पासंति, पासित्ता भीया जाव संजायभया जेणेव से सूलाइयपुरिसे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तं सूलाइयं पुरिसं एवं वयासी-'एसणं देवाणुप्पिया! कस्साघायणे? तुमंच णं के कओ वा इहं हव्वमागए ? केण वा इमेयारूवं आवई पाविए?'
___वहाँ उन्होंने एक बड़ा वधस्थान देखा। देखकर सैकड़ों हाड़ों के समूह से व्याप्त और देखने में भयंकर उस स्थान पर शूली पर चढ़ाये हुए एक पुरुष को करुण, विरस और कष्टमय शब्द करते देखा। उसे देखकर वे डर गये। उन्हें बड़ा भय उत्पन्न हुआ। फिर वे जहाँ शूली पर चढ़ाया पुरुष था, वहाँ पहुँचे और शूली पर चढ़े पुरुष से इस प्रकार बोले-'हे देवानुप्रिय! यह वधस्थान किसका है ? तुम कौन हो? किसलिए यहाँ आये थे? किसने तुम्हें इस विपत्ति में डाला है ?'
३४-तएणं से सूलाइयपुरिसे मागंदियदारए एवं वयासी- 'एस णं देवाणुप्पिया! रयणहीवदेवयाए आघायणे, अहण्णं देवाणुप्पिया! जंबुद्दीवाओ भारहाओ वासाओ कागंदीए आसवाणियए विपुलं पडियभंडमायाए पोतवहणेणं लवणसमुदं ओयाए। तए णं अहं पोयवहणविवत्तीए निब्बुडभंडसारे एगं फलगखंडं आसाएमि।तए णं अहं उवुज्झमाणे उवुज्झमाणे रयणदीवंतेणं संवूढे।तए णं सारयणद्दीवदेवया ममं ओहिणा पासइ, पासित्ता ममं गेण्हइ, गेण्हित्ता मए सद्धिं विपुलाई भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरइ। तए णं सा रयणद्दीवदेवया अन्नया कयाई अहालहुसगंसि अवराहसि परिकुविया समाणी ममं एयारूवं आवई पावेइ। तं ण णज्जइ णं देवाणुप्पिया! तुम्हं पि इमेसिं सरीरगाणं का मण्णे आवई भविस्सइ ?'
___ तब शूली पर चढ़े उस पुरुष ने माकन्दीपुत्रों से इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रियो! यह रत्नद्वीप की देवी का वधस्थान है। देवानुप्रियो ! मैं जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित काकंदी नगरी का निवासी अश्वों का व्यापारी हूँ। मैं बहुत-से अश्व और भाण्डोपकरण पोतवहन में भर कर लवणसमुद्र में चला। तत्पश्चात् पोतवहन
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