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________________ आठवाँ अध्ययन : मल्ली] [२२९ जारिसए णं इमे पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे ? __तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा उस श्रीदामकाण्ड को बहुत देर तक देखता रहा। देखकर उस श्रीदामकाण्ड के विषय में उसे आश्चर्य उत्पन्न हुआ-उसे देखकर चकित रह गया। उसने सुबुद्धि अमात्य से इस प्रकार कहा हे देवानुप्रिय! तुम मेरे दौत्य कार्य से-दूत के रूप में बहुतेरे ग्रामों, आकरों, नगरों यावत् सन्निवेशों आदि में घूमते हो और बहुत से राजाओं एवं ईश्वरों [तलवर, माडंविक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति] आदि के गृहों में प्रवेश करते हो; तो क्या तुमने ऐसा सुन्दर श्रीदामकाण्ड पहले कहीं देखा है जैसा पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड है? ४८-तए णं सुबुद्धी पडिबुद्धिं रायं एवं वयासी-एवं खलु सामी! अहं अन्नया कयाई तुब्भंदोच्चेणं मिहिलं रायहाणिं गए, तत्थ णं मए कुम्भगस्सरण्णोधूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए विदेहवररायकन्नाए, संवच्छरपडिलेहणगंसि दिव्वे सिरिदामगंडे दिट्ठपुव्वे। तस्स णं सिरिदामगंडस्स इमे पउमावईए सिरिदामगंडे सयसहस्सइमं पि कलं न अग्घइ। तब सुबुद्धि अमात्य ने प्रतिबुद्धि राजा से कहा-स्वामिन्! मैं एक बार किसी समय आपके दौत्यकार्य से मिथिला राजधानी गया था। वहाँ मैंने कुम्भ राजा की पुत्री और प्रभावती देवी की आत्मजा, विदेह की उत्तम राजकुमारी मल्ली के संवत्सर-प्रतिलेखन उत्सव (जन्मगांठ) के महोत्सव के समय दिव्य श्रीदामकाण्ड देखा था। उस श्रीदामकाण्ड के सामने पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड शतसहस्र-लाखवां अंश भी नहीं पाता-लाखवें अंश की भी बराबरी नहीं कर सकता। ४९-तए णं पडिबुद्धी राया सुबुद्धि अमच्चं एवं वयासी-केरिसिया णं देवाणुप्पिया! मल्ली विदेहवररायकन्ना जस्स णं संवच्छरपडिलेहणयंसि सिरिदामगंडस्स पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे सयसहस्सइमं पि कलं न अग्घइ? तए णं सुबुद्धी अमच्चे पडिबुद्धिं इक्खागुरायं एवं वयासी-एवं खलु सामी ! मल्ली विदेहवररायकन्नगा सुपइट्ठियकुम्मुन्नयचारुचरणा, वन्नओ। तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा ने सुबुद्धि मंत्री से इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय! विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली कैसी है? जिसकी जन्मगांठ के उत्सव में बनाये गये श्रीदामकाण्ड के सामने पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड लाखवां अंश भी नहीं पाता? ___ तब सुबुद्धि मंत्री ने इक्ष्वाकुराज प्रतिबुद्धि से कहा-'स्वामिन् ! विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली सुप्रतिष्ठित और कछुए के समान उन्नत एवं सुन्दर चरण वाली है, इत्यादि वर्णन जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति आदि के अनुसार जान लेना चाहिए। ५०-तए णं पडिबुद्धी राया सुबुद्धिस्स अमच्चस्स अंतिए एयमढं सोच्चा णिसम्म सिरिदामगंडजणियहासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-गच्छाहि णं तुमं देवाणुप्पिया ! मिहिलं रायहाणिं, तत्थ णं कुम्भगस्स रण्णो धूयं पउमावईए देवीए अत्तयं मल्लि विदेहवरराय १. पञ्चम अ. ५
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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