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________________ सप्तम अध्ययन : रोहिणीज्ञात ] उन्हें खेत में अलग बो दिया। प्रतिवर्ष वारंवार बोने से बहुत हो गए - कोठार भर गया । इस घटना को पांच वर्ष व्यतीत हो गए। तब धन्य - सार्थवाह ने पुनः पूर्ववत् समारोह आयोजित किया। जिन्हें पहले निमंत्रित किया था उन सबको पुनः निमंत्रित किया। सबका भोजन-पान, गंध-माला आदि से सत्कार किया। तत्पश्चात् पहले की ही भांति पुत्रवधुओं को सबके समक्ष बुला कर पांच-पांच दाने, जो पहले दिए थे, वापिस माँगे । [१९५ पहली पुत्रवधू ने कोठार में से लाकर पांच दाने दे दिए। धन्य-सार्थवाह ने जब पूछा कि क्या ये वही दाने हैं या दूसरे ? तो उसने सत्य वृत्तान्त कह दिया । सुन कर सेठ ने कुपित होकर उसे घर में झाड़ने- बुहारने आदि का काम सौंपा। कहा - 'तुम इसी योग्य हो ।' दूसरी पुत्रवधू ने कहा- 'आपका दिया प्रसाद समझ कर मैं उन दानों को खा गई हूं।' सार्थवाह ने उसके स्वभाव का अनुमान करके उसे भोजनशाला संबन्धी कार्य सौंपा। तीसरी पुत्रवधू ने पाँचों दाने सुरक्षित रक्खे थे, अतएव उसे कोषाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया। चौथी पुत्रवधू ने कहा- ' - 'पिताजी, वे पांच दाने गाड़ियों के बिना नहीं आ सकते। उन्हें लाने को कई गाड़ियां चाहिये।' जब धन्य - सार्थवाह ने स्पष्टीकरण मांगा तो उसने सारा ब्यौरा सुना दिया। गाड़ियां भेजी गईं। दानों का ढेर आ गया । धन्य यह देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुए। सब के समक्ष रोहिणी की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उसे गृहस्वामिनी के गौरवपूर्ण पद पर प्रतिष्ठित किया। कहा- 'तू प्रशंसनीय है बेटी ! तेरे प्रताप से यह परिवार सुखी और समृद्धिशाली रहेगा।' शास्त्रकार इस उदाहरण को धर्म-शिक्षा के रूप में इस प्रकार घटित करते हैं जो व्रती व्रत ग्रहण करके उन्हें त्याग देते हैं, वे पहली पुत्रवधू उज्झिता के समान इह - परभव में दुःखी होते हैं । सब की अवहेलना के भाजन बनते हैं। जो साधु पाँच महाव्रतों को ग्रहण करके सांसारिक भोग-उपभोग भोगने के लिए उनका उपयोग करते हैं, वे भी निंदा के पात्र बन कर भवभ्रमण करते हैं। जो साधु तीसरी पुत्रवधू रक्षिका के सदृश अंगीकृत पाँच महाव्रतों की भलीभांति रक्षा करते हैं, वे प्रशंसा - पात्र होते हैं और उनका भविष्य मंगलमय होता है। साधु रोहिणी के समान स्वीकृत संयम की उत्तरोत्तर वृद्धि करते हैं, निर्मल और निर्मलतर पालन करके संयम का विकास करते हैं, वे परमानन्द के भागी होते हैं । यद्यपि प्रस्तुत अध्ययन का उपसंहार धर्मशिक्षा के रूप में किया गया है और धर्मशास्त्र का उद्देश्य मुख्यतः धर्मशिक्षा देना ही होता है, तथापि उसे समझाने के लिए जिस कथानक की योजना की गई है वह गार्हस्थिक – पारिवारिक दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है । 'योग्यं योग्येन योजयेत्' यह छोटी-सी उक्ति अपने
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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