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पहलुओं को सुलझाने के लिए कथाओं का उपयोग किया है। वेद, उपनिषद्, त्रिपिटक, कुरान व बाइबिल में कथाएँ व रूपक हैं।
भगवान् महावीर ने भी कथाओं द्वारा बोध प्रदान किया है। प्रस्तुत आगम में आत्मा की उन्नति के क्या हेतु हैं, किन कारणों से आत्मा अधोगत होता है, महिला वर्ग भी उत्कृष्ट आध्यात्मिक उत्कर्ष कर सकता है। आहार का उद्देश्य, संयमी जीवन की कठोर साधना, शुभ परिणाम, अनासक्ति व श्रद्धा का महत्त्व आदि विषयों पर कथाओं के माध्यम से प्रकाश डाला गया है। ये कथाएँ वाद-विवाद के लिए नहीं, जीवन के उत्थान के लिए हैं। ये कथाएँ ईसामसीह की नीतिकथाओं (पैरबल्स) की तरह हैं, इनमें अनुभव का अमृत है। इन कथाओं की शैली सरल सीधी ओर सचोट है। मेघकुमार
प्रथम श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन में मेघकुमार की कथा दी गई है। मेघकुमार राजा श्रेणिक का पुत्र है। भगवान् महावीर के त्याग-वैराग्य से छलछलाते हुए प्रवचन को श्रवण कर अपनी आठों पत्नियों का परित्याग कर प्रव्रज्या ग्रहण करता है। माता-पिता व अन्य परिजन उसे रोकने का अथक प्रयास करते हैं किन्तु वैराग्यभावना इतनी प्रबल थी कि संसार का कोई भी आकर्षण उसे आकर्षित न कर सका। उसे एक दिन का राज्य भी दिया गया पर वह उसमें भी आसक्त नहीं हुआ। दीक्षा ग्रहण के पश्चात् श्रमण मेघ को रात्रि में सोने के लिए ऐसा स्थान मिला जहाँ सन्त-गण आते-जाते रहते थे। उनके पैरों की टकराहट से उसकी आँखें खुल जाती, पुनः आँखों में नींद छाने लगती कि दूसरे मुनि के चरण स्पर्श हो जाता। फूलों की सुकुमार शय्या पर सोने वाला राजकुमार आज धूल में सो रहा था और पैरों की ठोकरें लगने से उसे नींद नहीं आ रही थी, जिससे सिर भन्ना गया, आँखें लाल हो गई और सम्पूर्ण शरीर शिथिल हो गया। उसके विचार बदल गये। उसका सम्पूर्ण धैर्य कांच के बर्तन की तरह टूट-टूट कर बिखरने लगा। वह सोचने लगा-प्रतिदिन इस प्रकार पलकें मसले-मसलते उनींदी रातें बिताना किस प्रकार संभव हो सकेगा? प्रातः होने पर भगवान् महावीर मुनि मेघकुमार को उसका पूर्वभव सुनाते और कहते हैं-तुमने पूर्वभव में किस तरह कष्ट सहन किया था, स्मरण आ रहा है न? सुमेरुप्रभ हाथी के भव में दो दिन और तीन रात तुमने अपना एक पैर खरगोश को बचाने के लिए अधर रखा था। तीन दिन पश्चात् जब पैर को नीचे रखना चाहा तो अधर में रहने के कारण वह अकड़ गया था। जोर देकर नीचे रखने का तुमने प्रयास किया तो अपने आपको न संभालकर नीचे गिर पड़े। तीन दिन के भूखे और प्यासे तुम उठ नहीं सके और तुम्हारे मन में अपूर्व शांति थी। वह सुमेरुप्रभ हाथी मरकर तुम मेघ हुए हो। अब जरा से कष्ट से घबरा रहे हो। घबराओ मत, आध्यात्मिक दृष्टि से समभावपूर्वक सहन किये गये कष्टों का अत्यधिक मूल्य है। ये कष्ट जीवन को पवित्र बनाने वाले हैं।
भगवान् महावीर की प्रेरणाप्रद वाणी से मेघकुमार का हृदय प्रबुद्ध हो गया और वह साधक जीवन में आने वाले कष्टों से जूझने के लिए तैयार हो गया। मेघ के साथ नन्द की तुलना
मेघकुमार के समान ही सद्य:दीक्षित नन्द का वर्णन बौद्ध साहित्य सुत्तनिपात' धम्मपद' अट्ठकथा, जातककथा व थेरगाथा' में प्राप्त होता है। वहां भी तथागत बुद्ध के पास अपनी नवविवाहिता पत्नी जनपदकल्याणी
१. सुत्तनिपात-अट्ठकथा, पृ. २७२ ३. जातक सं. १८२
२. धम्मपद-अट्ठकथा, खण्ड-१, पृ. ५९-१०५ ४. थेरगाथा-१५७
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