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________________ १७६] [ज्ञाताधर्मकथा शुक ने कहा-'भगवन्! अव्याबाध क्या है?' 'हे शुक! जो वात, पित्त, कफ और सन्निपात (दो अथवा तीन का मिश्रण) आदि सम्बन्धी विविध प्रकार के रोग (उपायसाध्य व्याधि) और आतंक (तत्काल प्राणनाशक व्याधि) उदय में न आवें, वह हमारा अव्याबाध है।' __शुक-'भगवन् ! हम तो आराम में, उद्यान में, देवकुल में, सभा में तथा स्त्री, पशु और नपुंसक से रहित उपाश्रय में पडिहारी (वापस लौटा देने योग्य) पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक आदि ग्रहण करके विचरते हैं, वह हमारा प्रासुक विहार है।' ४७–'सरिसवया ते भंते ! भक्खेया अभक्खया?' 'सुया! सरिसवया भक्खया वि अभक्खेया वि।' 'से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ सरिसवया भक्खेया वि अभक्खेया वि?' 'सुया! सरिसवया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा–मित्तसरिसवया धन्नसरिसवया या तत्थ णं जे ते मित्तसरिसवया ते तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-सहजायया, सहवड्डियया सहपंसुकीलियया। ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते धन्नसरिसवया ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-सत्थपरिणया य असत्थपरिणया य। तत्थ णं जे ते असत्थपरिणया तं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णंजे ते सत्थपरिणया ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा–फासुगा य अफासुगा य।अफासुगा णं सुया ! नो भक्खेया। तत्थं णं जे ते फासुया ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-जाइया य अजाइया य।तत्थ णं जे ते अजाइया ते अभक्खेया। तत्थ णं जे ते जाइया ते दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-एसणिज्जा य अणेसणिज्जा य। तत्थ णं जे ते अणेसणिज्जा ते णं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते एसणिज्जा ते दुविहा पन्नता, तंजहा-लद्धा य अलद्धा य। तत्थ णं जे ते अलद्ध ते अभक्खेया। तत्थ णं जे ते सद्धा ते निग्गंथाणं भक्खेया। एएणं अटेणं सुया! एवं वुच्चइ सरिसवया भक्खेया वि अभक्खेया वि। शुक परिव्राजक ने प्रश्न किया-'भगवन् ! आपके लिए 'सरिसवया' भक्ष्य हैं या अभक्ष्य हैं ?' थावच्चापुत्र ने उत्तर दिया-'हे शुक! 'सरिसवया' हमारे लिए भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं।' शुक ने पुनः प्रश्न किया-'भगवन् ! किस अभिप्राय से ऐसा कहते हो कि 'सरिसवया' भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं ?' थावच्चापुत्र उत्तर देते हैं-'हे शुक! 'सरिसवया' दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार-मित्रसरिसवया (सदृश वय वाले मित्र) और धान्य-सरिसवया (सरसों)। इनमें जो मित्र-सरिसवया हैं, वे तीन
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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