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पञ्चम अध्ययन : शैलक]
[१६५ तत्पश्चात् थावच्चापुत्र पर अनुराग होने के कारण एक हजार पुरुष निष्क्रमण के लिए तैयार हुए। वे स्नान करके सब अलंकारों से विभूषित होकर, प्रत्येक-प्रत्येक अलग-अलग हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली पालकियों पर सवार होकर, मित्रों एवं ज्ञातिजनों आदि से परिवृत होकर थावच्चापुत्र के समीप प्रकट हुए-आये।
तब कृष्ण वासुदेव ने एक हजार पुरुषों को आया देखा। देखकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा-(देवानुप्रियो! जाओ थावच्चापुत्र को स्नान कराओ, अलंकारों से विभूषित करो और पुरुषसहस्रवाहिनी शिविका पर आरूढ़ करो, इत्यादि) जैसा मेघकुमार के दीक्षाभिषेक का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार यहाँ कहना चाहिए। फिर श्वेत और पीत अर्थात् चाँदी और सोने के कलशों से उसे स्नान कराया यावत् सर्व अलंकारों से विभूषित किया।
तत्पश्चात् थावच्चापुत्र उन हजार पुरुषों के साथ, शिविका पर आरूढ़ होकर, यावत् वाद्यों की ध्वनि के साथ, द्वारका नगरी के बीचों-बीच होकर निकला। निकलकर जहाँ गिरनार पर्वत, नन्दनवन उद्यान, सुरप्रिय यक्ष का यक्षायतन एवं अशोक वृक्ष था, उधर गया। वहाँ जाकर अरिहन्त अरिष्टनेमि के छत्र पर छत्र और पताका पर पताका (आदि अतिशय) देखता है और विद्याधरों एवं चारण मुनियों को और मुंभक देवों को नीचे उतरते-चढ़ते देखता है, वहीं शिविका से नीचे उतर जाता है।
. २३-तएणं से कण्हे वासुदेवे थावच्चापुत्तं पुरओ काउंजेणेव अरिहा अरिट्ठनेमी, सव्वं तंचेव तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्ठनेमिं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया! थावच्चापुत्ते थावच्चाए गाहावइणीए एगे पुत्ते इटे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेजे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीवियऊसासए हिययनंदिजणणे उंबरपुष्पं पिव दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए?'
से जहानामए उप्पलेति वा, पउमेति वा, कुमुदेति वा, पंके जाए जले संवड्ढिए नोवलिप्पड़ पंकरयेणं नोवलिप्पइ जलरएणं, एवामेव थावच्चापुत्ते कामेसु जाए भोगेसु संवड्डिए नोवलिप्पइ कामरएणं नोवलिप्पइ भोगरएणं। एस णं देवाणुप्पिया! संसारभउव्विग्गे, भीए जम्मण-जरमरणाणं, इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। अम्हे णं देवाणुप्पियाणं सिस्सभिक्खं दलयामो। पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया सिस्सभिक्खं।
तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे एयमटुं सम्मं पडिसुणेइ।
तए णं से थावच्चापुत्ते अरहओ अरिट्टनेमिस्स अंतियाओ उत्तरपुरस्थिमं दिसीभायं अवक्कमइ, सयमेव आभरणमल्लालंकार ओमुयइ।
तए णं से थावच्चा गाहावइणी हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरणमल्लालंकारे पडिच्छइ। पडिच्छित्ता हार-वारिधार-सिंदुवार-छिन्नमुत्तावलिपगासाइं अंसूणि विणिम्मुंचमाणी विणिम्मचमाणी एवं वयासी-'जइयव्वं जाया! घडियव्वं जाया! परक्कमियव्वं जाया! अस्सि च णं अटे णो पमाएव्वं' जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया।