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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात]
[९७ संसारासक्तचित्तानां मृत्युीत्यै भवेन्नृणाम्।
मोदायते पुनः सोऽपि ज्ञान-वैराग्यवासिनाम्॥ जिनका मन संसार में संसार के राग-रंग में उलझा होता है, उन्हें ही मृत्यु भयङ्कर जान पड़ती है, परन्तु जिनकी अन्तरात्मा सम्यग्ज्ञान और वैराग्य से वासित होती है, उनके लिए वह आनन्द का कारण बन जाती है। साधक की विचारणा तो विलक्षण प्रकार की होती है। वह विचार करता है
कृमिजालशताकीर्णे जर्जरे देहपञ्जरे।
भिद्यमाने न भेत्तव्यं यतस्त्वं ज्ञानविग्रहः॥ सैकड़ों कीड़ों के समूहों से व्याप्त शरीर रूपी पिंजरे का नाश होता है तो भले हो। इसके विनाश से मुझे भयभीत होने की क्या आवश्यकता है! इससे मेरा क्या बिगड़ता है! यह जड़ शरीर मेरा नहीं है। मेरा असली शरीर ज्ञान है-मैं ज्ञानविग्रह हूँ। वह मुझ से कदापि पृथक् नहीं हो सकता। समाधिमरण के काल में होने वाली साधक की भावना को व्यक्त करने के लिए कहा गया है
एगोऽहं नत्थि मे कोइ, नाहमन्नस्स कस्सइ। एवमदीणमनसो अप्पाणमणुसासइ॥ एगो मे सासओ अप्पा नाणदंसणसंजुओ। सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा॥ संजोगमूला जीवेण पत्ता दुक्खपरम्परा।
तम्हा संजोगसंबंधं सव्वं तिविहेण वोसरिअं॥ मैं एकाकी हूँ। मेरे सिवाय मेरा कोई नहीं है, मैं भी किसी अन्य का नहीं हूँ। इस प्रकार के विचार से प्रेरित होकर, दीनता का परित्याग करके अपनी आत्मा को अनुशासित करे। यह भी सोचे–ज्ञान और दर्शनमय एकमात्र शाश्वत आत्मा ही मेरा है। इसके अतिरिक्त संसार के समस्त पदार्थ मुझ से भिन्न हैं-संयोग से प्राप्त हो गये हैं और बाह्य पदार्थों के इस संयोग के कारण ही जीव को दुःखों की परम्परा प्राप्त हुई हैअनादिकाल से एक के बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरा जो दुःख उपस्थित होता रहता है, उसका मूल और मुख्य कारण पर-पदार्थों के साथ आत्मा का संयोग ही है। अब इस परम्परा का अन्त करने के लिए मैंने, मन वचन. काय से इस संयोग का त्याग कर दिया है।
इस प्रकार की आन्तरिक प्रेरणा से प्रेरित होकर साधक समाधिमरण अंगीकार करता है किन्तु मानवजीवन अत्यन्त दुर्लभ है। आगम में चार दुर्लभ उपलब्धियाँ कही गई हैं। मानव जीवन उनमें परिगणित है। देवता भी इस जीवन की कामना करते हैं। अतएव निष्कारण, जब मन में उमंग उठी तभी इसका अन्त नहीं किया जा सकता। संयमशील साधक मनुष्यशरीर के माध्यम से आत्महित सिद्ध करता है और उसी उद्देश्य से इसका संरक्षण भी करता है। परंतु जब ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाय कि जिस