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________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात ] १२ १३ १४ १५ १६ बारह उपवास तेरह उपवास चौदह उपवास पंद्रह उपवास सोलह उपवास २४ २६ २८ ३० ३२ ४०७ २६ २८ ३० ३२ ३४ ४८० [ ९३ २ २ २ २ ७३ जिस मास में जितने दिन कम हैं, उसके अगले मास में से उतने दिन अधिक समझ लेने चाहिए। इसी प्रकार जिस मास में अधिक हैं, उसके दिन अगले मास में सम्मिलित कर देने चाहिए । १९९ - तणं से मेहे अणगारे पढमं मासं चउत्थं चउत्थेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अवाउडएणं । दोच्चं मासं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे, रत्तिं वीरासणेणं अवाउडएणं । तच्चं मासं अट्ठमं-अट्टमेण अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं, दिया ठाणुक्कुड सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं उवाउडएणं । चउत्थं मासं दसमंदसमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमूहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अवाउडएणं । पंचमं मासं दुवालसमंदुवालसमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अवाउडएणं । एवं खलु एएणं अभिलावेणं छट्ठे चोदसमंचोद्दसमेणं, सत्तमे सोलसमंसोलसमेणं, अट्ठमे अट्ठारसमं अट्ठारसमेणं, नवमे वीसतिमंवीसतिमेणं, दसमे बावीसइमंबावीसइमेणं, एक्कारसमे चउवीसइमंचउवीसइमेणं, बारसमे छव्वीसइमंछव्वीसइमेणं, तेरसमे अट्ठावीसइमं अट्ठावीसइमेणं, चोद्दसमे तीसइमंतीसइमेणं, पंचदसमे बत्तीसइमंबत्तीसइमेणं, सोलसमे मासे चउत्तीसइमंचउत्तीसइमेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडुएणं सूराभिमु आयावणभूमीए आयावेमाणे राइं वीरासणेण य अवाउएण य तत्पश्चात् मेघ अनगार पहले महीने में निरन्तर चतुर्थभक्त अर्थात् एकान्तर उपवास की तपस्या के साथ विचरने लगे। दिन में उत्कट (गोदोहन) आसन से रहते और आतापना लेने की भूमि में सूर्य के सन्मुख आतापना लेते। रात्रि में प्रावरण (वस्त्र) से रहित होकर वीरासन में स्थित रहते थे । इसी प्रकार दूसरे महीने निरन्तर षष्ठभक्त तप - बेला, तीसरे महीने अष्टमभक्त (तेला) तथा चौथे मास में दशमभक्त (चौला) तप करते हुए विचरने लगे। दिन में उत्कट आसन से स्थित रहते, सूर्य के सामने आतापना भूमि में आतापना लेते और रात्रि में प्रावरण रहित होकर वीरासन से रहते । पाँचवें मास में द्वादशम-द्वादशम (पंचोले - पंचोले) का निरन्तर तप करने लगे। दिन में उकडू आस स्थिर होकर, सूर्य के सन्मुख आतापनाभूमि में आतापना लेते और रात्रि में प्रावरणरहित होकर वीरासन से रहते थे।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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