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________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात ] मेघकुमार शिविका पर आरूढ हुआ और सिंहासन के पास पहुंचकर पूर्वदिशा की ओर मुख करके बैठ गया। ____१४६-तएणं तस्स मेहस्स कुमारस्स माया ण्हाया कयबलिकम्मा जाव अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरा सीयं दुरूहति।दुरूहित्ता मेहस्स कुमारस्स दाहिणे पासे भद्दासणंसि निसीयति। तएणं महस्स कुमारस्स अबंधाई रयहरणंच पडिग्गहं च गहाय सीयं दुरूहइ, दुरूहित्ता मेहस्स कुमारस्स वामे पासे भद्दासणंसि निसीयति। ___ तत्पश्चात् जो स्नान कर चुकी है, बलिकर्म कर चुकी है यावत् अल्प और बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत कर चुकी है, ऐसी मेघकुमार की माता उस शिविका पर आरूढ हुई। आरूढ होकर मेघकुमार के दाहिने पार्श्व में भंद्रासन पर बैठी। ___ तत्पश्चात् मेघकुमार की धायमाता रजोहरण और पात्र लेकर शिविका पर आरूढ होकर मेघकुमार के बायें पार्श्व में भद्रासन पर बैठ गई। १४७-तएणं तस्स मेहस्स कुमारस्स पिट्ठओ एगा वरतरुणी सिंगारागचारुवेसा संगयगय-हसिय-भणिय-चेट्ठिय-विलास-संलावुल्लाव-निउणजुत्तोवयारकुसला, आमेलग-जमलजुयल-वट्टियअब्भुन्नय-पीण-रइय-संठियपओहरा, हिम-रययकुन्देन्दुपगासं सकोरंटमल्लदामधवलं आयवत्तं गहाय सलीलं ओहारेमाणी ओहारेमाणी चिट्ठइ। तत्पश्चात् मेघकुमार के पीछे श्रृंगार के आगार रूप, मनोहर वेष वाली, सुन्दर गति, हास्य, वचन, चेष्टा, विलास, संलाप (पारस्परिक वार्तालाप), उल्लाप (वर्णन) करने में कुशल, योग्य उपचार करने में कुशल, परस्पर मिले हुए, समश्रेणी में स्थित, गोल, ऊँचे, पुष्ट, प्रीतिजनक और उत्तम आकार के स्तनों वाली एक उत्तम तरुणी, हिम (बर्फ), चाँदी, कुन्दपुष्प और चन्द्रमा के समान प्रकाश वाले, कोरंट के पुष्पों की माला से युक्त धवल छत्र को हाथों में थामकर लीलापूर्वक खड़ी हुई। १४८-तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स दुवे वरतरुणीओ सिंगारागारचारुवेसाओ जाव कुसलाओ सीयं दुरूहंति, दुरूहित्ता मेहस्स कुमारस्स उभओ पासं नाणामणि-कणग-रयणमहरिहत-वणिज्जुजलविचित्तदंडाओ चिल्लियाओ सुहुमवरदीहवालाओ संख-कुंद-दगरयअ-महियफेणपुंजसन्निगासाओ चामराओ गहाय सलीलं ओहारेमाणीओ ओहारेमाणीओ चिट्ठति। ___ तत्पश्चात् मेघकुमार के समीप शृंगार के आगार के समान, सुन्दर वेष वाली, यावत् उचित उपचार करने में कुशल दो श्रेष्ठ तरुणियां शिविका पर आरूढ हुईं। आरूढ होकर मेघकुमार के दोनों पार्थों में, विविध प्रकार के मणि सुवर्ण रत्न और महान् जनों के योग्य, अथवा बहुमूल्य तपनीयमय (रक्तवर्ण स्वर्ण वाले) उज्ज्वल एवं विचित्र दंडी वाले, चमचमाते हुए, पतले उत्तम और लम्बे बालों वाले, शंख कुन्दपुष्प जलकण रजत एवं मंथन किये हुए अमृत के फेन के समूह सरीखे (श्वेत वर्ण वाले) दो चामर धारण करके लीलापूर्वक वींजती-वींजती हुई खड़ी हुई। १४९-तइ णं तस्स मेहकुमारस्स एगा वरतरुणी सिंगारागारचारुवेसा जाव कुसला
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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