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________________ ६६] [ज्ञाताधर्मकथा सयसहस्साइंगहाय कुत्तियावणाओ दोहिं सयसहस्सेहिं रयहरणं पडिग्गहंच उवणेन्ति, सयसहस्सेणं कासवयं सदावेन्ति। तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलवाया। बुलवाकर इस प्रकार कहा'देवानप्रियो! तुम जाओ, श्रीगह (खजाने) से तीन लाख स्वर्ण-मोहरें लेकर दो लाख से कृत्रिकापण से रजोहरण और पात्र ले आओ तथा एक लाख देकर नाई को बुला लाओ। तत्पश्चात् वे कौटुम्बिक पुरुष, राजा श्रेणिक के ऐसा कहने पर हृष्ट-तुष्ट होकर श्रीगृह से तीन लाख मोहरें लेकर कुत्रिकापण से, दो लाख से रजोहरण और पात्र लाये और एक लाख मोहरें देकर उन्होंने नाई को बुलवाया। दीक्षा की तैयारी १३९-तएणं से कासवए तेहिं कोडुंबियपुरिसेहिं सद्दाविए समाणे हटे जाव (हट्टतुटुचित्त-माणंदिए जाव हरिसवसविसप्पमाणहियए) हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई वत्थाई मंगलाई पवरपरिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे जेणेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता सेणियं रायं करयलमंजलिं कट्ट एवं वयासी-'संदिसह णं देवाणुप्पिया! जं मए करणिजं।' तएणं से सेणिए राया कासवयं एवं वयासी-'गच्छाहि णं तुमं देवाणुप्पिया! सुरभिणा गंधोदएणं णिक्के हत्थपाए पक्खालेह। सेयाए चउप्फालाए पोत्तीए मुहं बंधेत्ता मेहस्स कुमारस्स चउरंगुलवजे णिक्खमणपाउग्गे अग्गकेसे कप्पेहि।' तत्पश्चात कौटम्बिक पुरुषों द्वारा बलाया गया वह नाई हृष्ट-तष्ट हआ यावत उसका हृदय आनन्दित हआ। उसने स्नान किया, बलिकर्म (गहदेवता का पूजन) किया, मषी-तिलक आदि कौतुक, दही दुर्वा आदि मंगल एवं दुःस्वप्न का निवारण रूप प्रायश्चित्त किया। साफ और राजसभा में प्रवेश करने योग्य मांगलिक और श्रेष्ठ वस्त्र धारण किये। थोड़े और बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को विभूषित किया। फिर जहाँ श्रेणिक राजा था. वहाँ आया। आकर, दोनों हाथ जोड़कर श्रेणिक राजा से इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रिय! मुझे जो करना है, उसकी आज्ञा दीजिए।' तब श्रेणिक राजा ने नाई से इस प्रकार कहा-'देवानुप्रिय! तुम जाओ और सुगंधित गंधोदक से अच्छी तरह हाथ पैर धो लो। फिर चार तह वाले श्वेत वस्त्र से मुँह बाँधकर मेघकुमार के बाल दीक्षा के योग्य चार अंगुल छोड़कर काट दो।' १४०-तए णं से कासवए सेणिएणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुटु जाव हियए जाव पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सुरभिणा गंधोदएयं हत्थपाए पक्खालेइ, पक्खालित्ता सुद्धवत्थेणं मुहं बंधति, बंधित्ता परेणं जत्तेणं मेहस्स कुमारस्स चउरंगुलवजे णिक्खमणपाउग्गे अग्गकेसे कप्पइ। ___ तत्पश्चात् वह नापित श्रेणिक राजा के ऐसा कहने पर हृष्ट-तुष्ट और आनन्दितहृदय हुआ। उसने यावत् श्रेणिक राजा का आदेश स्वीकार किया। स्वीकार करके सुगंधित गंधोदक से हाथ-पैर धोए। हाथ-पैर धोकर शुद्ध वस्त्र से मुँह बाँधा। बाँधकर बड़ी सावधानी से मेघकुमार के चार अंगुल छोड़कर दीक्षा ये योग्य केश काटे।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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