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[ज्ञाताधर्मकथा
कलाशिक्षण
९८-तए णं तं मेहकुमारं अम्मापियरो सातिरेगट्ठवासजायगं चेव (गब्भट्ठमे वासे) सोहणंसि तिहिकरणमुहुत्तंसि कलायरियस्स उवणेन्ति।तते णं से कलायरिए मेहं कुमारंलेहाइयाओ गणितप्पहाणाओ सउणरुतपजवसाणाओ बावत्तरि कलाओ सुत्तओ अअत्थओ अकरणओ य सेहावेति, सिक्खावेति।
तत्पश्चात् मेघकुमार जब कुछ अधिक आठ वर्ष का हुआ अर्थात् गर्भ से आठ वर्ष का हुआ तब माता-पिता ने शुभ तिथि, करण और मुहूर्त में कलाचार्य के पास भेजा। तत्पश्चात् कलाचार्य ने मेघकुमार को, गणित जिनमें प्रधान है ऐसी, लेखा आदि शकुनिरुत (पक्षियों के शब्द) तक की बहत्तर कलाएँ सूत्र से, अर्थ ओर प्रयोग से सिद्ध करवाईं तथा सिखलाईं।
९९-तंजहा-(१) लेहं (२) गणियं (३) रूवं (४) नर्से (५) गीयं (६) वाइयं (७) सरगयं(८) पोक्खरगयं(९) समतालं(१०) जूयं(११)जणवायं(१२) पासयं(१३) अट्ठावयं(१४) पोरेकच्चं (१५)दगमट्टियं (१६)अन्नविहिं (१७) पाणविहिं (१८)वत्थविहिं (१९) विलेवणविहिं (२०) सयणविहिं (२१) अजं (२१) पहेलियं (२३) मागहियं (२४) गाहं ( २५) गीइयं(२६)सिलोयं(२७) हिरण्णजुत्तिं (२८) सुवन्नजुत्तिं (२९) चुन्नजुत्तिं (३०) आभरणविहिं (३१) तरुणीपडिकम्मं (३२) इत्थिलक्खणं (३३) पुरिसलक्खणं (३४) हयलक्खणं (३५) गयलक्खणं (३६) गोणलक्खणं (३७) कुक्कुडलक्खणं (३८) छत्तलक्खणं (३९) डंडलक्खणं (४०) असिलक्खणं (४१) मणिलक्खणं (४२) कागणिलक्खणं (४३) वत्थुविजं (४४) खंधारमाणं (४५) नगरमाणं (४६) हं (४७) पडिवूहं (४८) चारं (४९) पडिचारं (५०) चक्कवूहं (५१) गरुलवूहं (५२) सगडवूहं (५३) जुद्धं (५४) निजुद्धं (५५) जुद्धतिजुद्धं (५६) अट्ठिजुद्धं (५७) मुट्ठिजुद्धं (५८) बाहुजुद्धं (५९) लजाजुद्धं (६०) ईसत्थं (६१) छरुप्पवायं (६२) धणुव्वेयं (६३) हिरन्नपागं (६४) सुवन्नपागं (६५) सुत्तखेडं (६६) वट्टखेडं (६७) नालियाखेडं (६८) पत्तच्छेज्जं (६९) कडगच्छेजं (७०) सज्जीवं (७१) निजीवं (७२) सउणरुअमिति।
__ वे कलाएँ इस प्रकार हैं-(१) लेखन, (२) गणित, (३) रूप बदलना, (४) नाटक, (५) गायन, (६) वाद्य बजाना, (७) स्वर जानना, (८) वाद्य सुधारना, (९) समान ताल जानना, (१०) जुआ खेलना, (११) लोगों के साथ वाद-विवाद करना, (१२) पासों से खेलना, (१३) चौपड़ खेलना, (१४) नगर की रक्षा करना, (१५) जल और मिट्टी के संयोग से वस्तु का निर्माण करना, (१६) धान्य निपजाना, (१७) नया पानी उत्पन्न करना, पानी को संस्कार करके शुद्ध करना एवं उष्ण करना, (१८) नवीन वस्त्र बनाना, रंगना, सीना
और पहनना, (१९) विलेपन की वस्तु को पहचानना, तैयार करना, लेप करना आदि, (२०) शय्या बनाना, शयन करने की विधि जानना आदि, (२१) आर्या छंद को पहचानना और बनाना, (२२) पहेलियाँ बनाना और बूझना, (२३) मागधिका अर्थात् मगध देश की भाषा में गाथा आदि बनाना, (२४) प्राकृत भाषा में गाथा आदि बनाना, (२५) गीति छंद बनाना, (२६) श्लोक (अनुष्टुप् छंद) बनाना, (२७) सुवर्ण बनाना, उसके आभूषण बनाना, पहनना आदि (२८) नई चांदी बनाना, उसके आभूषण बनाना, पहनना आदि, (२९) चूर्ण-गुलाल