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प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात ]
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तोरणों का निर्माण कराओ, विपुल गोलाकार मालाएं लटकाओ, पांचों रंगों के ताजा और सुगंधित फूलों को बिखेरो, काले अगर, श्रेष्ठ कुन्दरुक, लोभान तथा धूप इस प्रकार जलाओ कि उनकी सुगंध से सारा वातावरण मघमघा जाय, श्रेष्ठ सुगंध के कारण नगर सुगंध की गुटिका जैसा बन जाय, नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक (मुक्केबाज), विडंवक (विदूषक), कथाकार, प्लवक (तैराक), नृत्यकर्ता, आइक्खग - शुभाशुभ फल बताने वाले, बांस पर चढ़ कर खेल दिखाने वाले, चित्रपट दिखाने वाले, तूणा - वीणा बजाने वाले, तालियां पीटने वाले आदि लोगों से युक्त करो एवं सर्वत्र (मंगल) गान कराओ । कारागार से कैदियों को मुक्त करो। तोल और नाप की वृद्धि करो। यह सब करके मेरी आज्ञा वापिस सौंपो ।
यावत् कौटुम्बिक पुरुष राजाज्ञा के अनुसार कार्य करके आज्ञा वापिस देते हैं।
९१ - तणं से सेणिए राया अट्ठारससेणीप्पसेणीओ सद्दावेति । सद्दावित्ता एवं वयासी'गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! रायगिहे नगरे अब्भितरबाहिरिए उस्सुक्कं उक्करं अभडप्पवेसं अदंडिमकुडंडिमं अधरिमं अधारणिज्जं अणुद्धयमुइंगं अमिलायल्लदामं गणियावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरितं पमुझ्यपक्कीलियाभिरामं जहारिहं ठिइ वडियं दसदिवसियं करेह कारवेह | करिता एमाणित्तियं पच्चण्पिणह ।'
ते वि करेन्ति, करित्ता तहेव पच्चप्पिणंति ।
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तत्पश्चात् श्रेणिक राजा कुंभकार आदि जाति रूप अठारह श्रेणियों को और उनके उपविभाग रूप अठारह प्रश्रेणियों को बुलाता है। बुलाकर इस प्रकार कहता है - देवानुप्रियो ! तुम जाओ और राजगृह नगर के भीतर और बाहर दस दिन की स्थितिपतिका (कुलमर्यादा के अनुसार होने वाली पुत्रजन्मोत्सव की विशिष्ट रीति) कराओ । वह इस प्रकार हैहै - दस दिनों तक शुल्क (चुंगी) लेना बंद किया जाय, गायों वगैरह का प्रतिवर्ष लगने वाला कर माफ किया जाय, कुटुंबियों-किसानों आदि के घर में बेगार लेने आदि के राजपुरुषों का प्रवेश निषिद्ध किया जाय, दंड (अपराध के अनुसार लिया जाने वाला द्रव्य) न लिया जाय, किसी को ऋणी न रहने दिया जाय, अर्थात् राजा की तरफ से सबका ऋण चुका दिया जाय, किसी देनदार को पकड़ा न जाय, ऐसी घोषणा कर दो तथा सर्वत्र मृदंग आदि बाजे बजवाओ। चारों ओर विकसित ताजा फूलों की मालाएँ लटकाओ । गणिकाएँ जिनमें प्रधान हों ऐसे पात्रों से नाटक करवाओ। अनेक तालाचरों (प्रेक्षाकारियों) से नाटक करवाओ। ऐसा करो कि लोग हर्षित होकर क्रीड़ा करें। इस प्रकार यथायोग्य दस दिन की स्थितिपतिका करोकराओ, मेरी यह आज्ञा मुझे वापिस सौंपो ।
राजा श्रेणिक का यह आदेश सुनकर वे इसी प्रकार करते हैं और राजाज्ञा वापिस करते हैं ।
९२ - तए णं से सेणिए राया बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने सइएहि य साहस्सिएहि य सयसाहस्सिएहि य जाएहिं दाएहिं भागेहिं दलयमाणे दलयमाणे पडिच्छेमाणे पडिच्छेमाणे एवं च णं विहरति ।
तत्पश्चात् श्रेणिक राजा बाहर की उपस्थानशाला (सभाभवन) में पूर्व की ओर मुख करके, श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठा और सैकड़ों हजारों और लाखों के द्रव्य से याग (पूजन) किया एवं दान दिया। उसने अपनी आय में से अमुक भाग दिया और प्राप्त होने वाले द्रव्य को ग्रहण करता हुआ विचरने लगा।