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________________ ७६ ] [ सूत्रकृतांगसूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध हरण कर लेता है, और इस तरह अपना जीवन निर्वाह करता है । इस प्रकार के महापाप के कारण वह स्वयं को महापापी के रूप में विख्यात कर लेता है । (६) कोई पापात्मा भेड़ों का चरवाहा बन कर उन भेड़ों में से किसी को या अन्य किसी भी स प्राणी को मार-पीट कर उसका छेदन भेदन ताड़न आदि करके तथा उसे पीड़ा देकर या उसकी हत्या करके अपनी आजीविका चलाता है । इस प्रकार का महापापी उक्त महापाप के कारण जगत् में स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है । (७) कोई पापकर्मा जीव सूअरों को पालने का या कसाई का धन्धा अपना कर भैंसे, सूअर या दूसरे स प्राणी को मार-पीट कर उनके अंगों का छेदन-भेदन करके, उन्हें तरह-तरह से यातना देकर या उनका वध करके अपनी आजीविका का निर्वाह करता है । इस प्रकार का महान् पाप-कर्म करने के कारण संसार में वह अपने आपको महापापी के नाम से विख्यात कर लेता है । (८) कोई पापी जीव शिकारी का धंधा अपना कर मृग या अन्य किसी त्रस प्राणी को मार-पीट कर, छेदन-भेदन करके, जान से मार कर अपनी जीविका उपार्जन करता है । इस प्रकार के महापापकर्म के कारण जगत् में वह स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है | (e) कोई पापात्मा बहेलिया बन कर पक्षियों को जाल फंसाकर पकड़ने का धंधा स्वीकार करके पक्षी या अन्य किसी त्रस प्राणी को मारकर, उसके अंगों का छेदन भेदन करके, या उसे विविध यातनाएँ देकर उसका वध करके उससे अपनी आजीविका कमाता है । वह इस महान् पापकर्म के कारण विश्व में स्वयं को महापापी के नाम से प्रख्यात कर लेता है । (१०) कोई पापकर्मजीवी मछुआ बनकर मछलियों को जाल में फंसा कर पकड़ने का धंधा अपना कर मछली या अन्य त्रस जलजन्तुओं का हनन, छेदन-भेदन, ताड़न आदि करके तथा उन्हें अनेक प्रकार से यातनाएँ देकर, यहाँ तक कि प्राणों से रहित करके अपनी आजीविका चलाता है । अतः वह इस महापाप कृत्य के कारण जगत् में स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है । (११) कोई पापात्मा गोवंशघातक (कसाई) का धंधा अपना कर गाय, बैल या अन्य किसी भी स प्राणी का हनन, छेदन, भेदन, ताड़न आदि करके उसे विविध यातनाएँ देकर, यहां तक कि उसे जीवनरहित करके उससे अपनी जीविका कमाता है । परन्तु ऐसे निन्द्य महापापकर्म करने के कारण जगत् में वह अपने आपको महापापी के रूप में प्रसिद्ध कर लेता है । (१२) कोई व्यक्ति गोपालन का धंधा स्वीकार करके ( कुपित होकर ) उन्हीं गायों या उनके बछड़ों को टोले से पृथक् निकाल- निकाल कर बार-बार उन्हें मारता पीटता तथा भूखे रखता है, उनका छेदन-भेदन आदि करता है, उन्हें कसाई को बेच देता है, या स्वयं उनकी हत्या कर डालता है, उससे अपनी रोजी-रोटी कमाता है । इस प्रकार के महापापकर्म करने से वह स्वयं महापापियों की सूची में प्रसिद्धि पा लेता है । (१३) कोई अत्यन्त नीचकर्मकर्ता व्यक्ति कुत्तों को पकड़ कर पालने का धंधा अपना कर उनमें से किसी कुत्ते को या अन्य किसी त्रस प्राणी को मार कर उसके अंगभंग करके या उसे यातना देकर, यहाँ तक कि उसके प्राण लेकर उससे अपनी आजीविका कमाता है । वह उक्त महापाप कारण जगत् में स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है ।
SR No.003439
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages282
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size20 MB
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