________________
पौण्डरीक : प्रथम अध्ययन : सूत्र ६४३ ]
[ १३ व्यक्तियों का मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण किया जाय तो चारों के मनोभावों और तदनुसार उनकी चेष्टाओं में थोड़ा-थोड़ा अन्तर जान पड़ता है। वह अन्तर इस प्रकार है. (१) चारों व्यक्ति चार अलग-अलग दिशाओं से आए थे।
(२) प्रथम व्यक्ति ने उस पुष्करिणी को सर्वप्रथम देखा और उस उत्तम श्वेतकमल को पाने में उसकी दृष्टि सर्वप्रथम केन्द्रित हुई । उसके पश्चात् क्रमशः दूसरा, तीसरा और चौथा व्यक्ति प्राया।
(३) अपने से पूर्व असफल व्यक्ति को क्रमशः दूसरा, तीसरा और चौथा व्यक्ति कोसता है और अपने पौरुष, कौशल और पाण्डित्य की डींग हांकता है
(४) चारों ही व्यक्तियों ने गर्वोद्धत होकर अपना मूल्यांकन गलत किया, अपने से पूर्व असफल होने वाले व्यक्तियों की असफलता से कोई प्रेरणा नहीं ली । फलतः चारों ही अपने प्रयास में
विफल हुए।
उत्तम श्वेतकमल को पाने में सफल : निःस्पृह भिक्ष
६४३-अह भिक्खू लहे तीरट्ठी खेयण्णे कुसले पंडित वियत्ते मेहावी प्रबाले मग्गत्थे मग्गविदू मग्गस्स गतिपरक्कमण्ण अन्नतरीयो दिसाम्रो अणुदिसाम्रो वा पागम्म तं पुक्खरणी तीसे पुक्खरणीए तोरे ठिच्चा पासति तं महं एगं पउमवरपोंडरीयं जाव पडिरूवं, ते य चत्तारि पुरिसजाते पासति पहीणे तीरं अप्पत्ते जाव अंतरा पोक्खरणीए सेयंसि विसण्णे ।
तते णं से भिक्खू एवं वदासी-ग्रहो णं इमे पुरिसा अखेतण्णा जाव णो मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू जं णं एते पुरिसा एवं मन्ने 'अम्हेयं पउमवरपोंडरीयं उन्निक्खिस्सामो', णो य खलु एयं पउमवरपोंडरीयं एवं उन्नक्खेतव्वं जहा णं एते पुरिसा मन्ने, प्रहमंसी भिक्ख ल हे तोरट्ठी खेयण्णे जाव मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू, अहमेयं पउमवर-पोंडरीयं उन्निक्खिस्सामि त्ति कट्ट इति वच्चा से भिक्खू णो अभिक्कमे तं पुक्खरणि, तीसे पुक्खरणीए तीरे ठिच्चा सदं कुज्जा-"उप्पताहि खलु भो पउमवरपोंडरीया ! उप्पताहि खलु भो पउमवरपोंडरीया !" अह से उप्पतिते पउमवरपोंडरीए।
६४३-इसके पश्चात् राग-द्वेषरहित (रूक्ष-अस्निग्ध घड़े के समान कर्ममल-लेपरहित), संसार- सागर के तीर (उस पार जाने का इच्छुक खेदज्ञ या क्षेत्रज्ञ, यावत् (पूर्वोक्त सभी विशेषणों से युक्त) मार्ग की गति और पराक्रम का विशेषज्ञ तथा निर्दोष भिक्षामात्र से निर्वाह करने वाला साधु किसी दिशा अथवा विदिशा से उस पुष्करिणी के पास आ कर उस (पूष्करिणी) के तट पर खड़ा हो कर उस श्रेष्ठ पुण्डरीक कमल को देखता है, जो अन्यन्त विशाल यावत् (पूर्वोक्त गुणों से युक्त) मनोहर है । और वहाँ वह भिक्षु उन चारों पुरुषों को भी देखता है, जो किनारे से बहुत दूर हट चुके हैं, और उत्तम श्वेतकमल को भी नहीं पा सके हैं । जो न तो इस पार के रहे हैं, न उस पार के, जो पुष्करिणी के बीच में ही कीचड़ में फंस गए हैं।
इसके पश्चात् उस भिक्षु ने उन चारों पुरुषों के सम्बन्ध में इस प्रकार कहा-अहो ! ये चारों व्यक्ति खेदज्ञ नहीं हैं, यावत् (पूर्वोक्त विशेषणों से सम्पन्न) मार्ग की गति एवं पराक्रम से अनभिज्ञ हैं।