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नालन्दकीय : सप्तम अध्ययन : सूत्र ८७३]
(४) उदक निर्ग्रन्थ का हृदयपरिवर्तन, तदनुसार उनके द्वारा चातुर्यामधर्म का विसर्जन करके सप्रतिक्रमणपंचमहाव्रतरूप धर्म स्वीकार करने की इच्छा प्रदर्शित करना।
(५) उदक की इस भव्य इच्छा की पूर्ति के लिए श्री गौतमस्वामी द्वारा उन्हें अपने साथ लेकर भगवान् महावीर स्वामी के निकट जाना।
(६) भगवान् महावीर के समक्ष वन्दन-नमस्कार आदि करके उदक द्वारा सप्रतिक्रमण पंचमहाव्रतरूप धर्म स्वीकार करने की अभिलाषा व्यक्त करना।
(७) भगवान् द्वारा स्वीकृति ।
(८) उदक द्वारा पंचमहाव्रतरूप धर्म का अंगीकार और भगवान महावीर के शासन में विचरण ।' गौतम स्वामी द्वारा उदक निर्ग्रन्थ को कृतज्ञताप्रकाश के लिए प्रेरित करने का कारणचूर्णिकार के शब्दों में इस प्रकार है-इस प्रकार भगवान् के द्वारा बहुत-से हेतुओं द्वारा उदक अनगार निरुत्तर कर दिया गया था, तब अन्तर से तो जैसा इन्होंने कहा, वैसा ही (सत्य) है' इस प्रकार स्वीकार करते हुए भी वह बाहर से किसी प्रकार की कायिक या वाचिक चेष्टा से यह प्रकट नहीं कर रहे थे, 'आपने जैसा कहा, वैसा ही (सत्य) है, बल्कि इससे विरक्त होकर दुविधा में पड़ गये थे। तब भगवान् गौतम ने उन्हें (कृतज्ञताप्रकाश के लिए) ऐसे (मूलपाठ में उक्त) उद्गार कहे ।'२
॥ नालन्दकीय : सप्तम अध्ययन समाप्त ॥ ॥ सूत्रकृतांग-द्वितीयश्रुतस्कन्ध सम्पूर्ण ॥
॥ सूत्रकृतांग सम्पूर्ण ॥
१. सूत्रकृतांग शीलांकवृत्ति पत्रांक ४२४ से ४२७ तक का सारांश । २. एवं सो उदयो “निरुत्तो कतो,""बाहिरं चेट्ठण पउंजत्ति "वीरत्तण दोण्हिक्को अच्छंति' गोतमे उदगं एवं _ वदासि ।" -सूत्रकृ. चू. (मू. पा. टि.) पृ. २५४ ।