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________________ सूत्रकृतांग - प्रथम अध्ययन - समय वादियों से अलग (एक किनारे) रहने वाले । पाशस्थ का अर्थ होता है - पाश (बन्धन) में जकड़े हुए की तरह कर्मपाश ( कर्मबन्धन) में जकड़े हुए यहाँ 'पाशस्थ' रूप ही अधिक संगत लगता है । उवट्ठिया संता - अपने सिद्धान्तानुसार पारलौकिक क्रिया में उपस्थित ( प्रवृत्त) होकर भी । ४८ ण ते दुक्ख विमोक्खया - वृत्तिकार के अनुसार अपने आपको संसार के दुःख से मुक्त नहीं कर पाते । चूर्णिकार ने लक्खविमोक्खया' पाठ मानकर अर्थ किया है - अपनी आत्मा को संसार दुःख से विमुक्त नहीं कर पाते। कहीं-कहीं 'ण ते दुक्खविमोयगा' पाठान्तर है, उसका भी वही अर्थ है | अज्ञानवाद - स्वरूप ३३. जविणो मिगा जहा संता परिताणेण वज्जिता । असंकियाई संकति संकियाइं असंकिणो ॥ ६ ॥ 4 ३४. परियाणियाणि संकंता पासिताणि असंकिणो । अण्णाणभयसंविग्गा संपलिति तहि तहि ॥ ७ ॥ ३५. अह तं पवेज्ज वज्झं अहे वज्झस्स वा वए । मुज्ज पयपासाओ तं तु मंदे ण देहती ॥ ८ ॥ ३६. अहियप्पाऽहियपण्णाणे विसमंतेणुवागते । से बद्ध पयपासहि तत्थ घायं नियच्छति ॥ ६ ॥ ३७. एवं तु समणा एगे मिच्छद्दिट्ठी अणारिया । असंकिताई संकंति संकिताई असंकिणो ॥ १० ॥ ३८. धम्मपण्णवणा जा सा तं तु संकंति मूढगा । आरंभाई न संकति अवियत्ता अकोविया ॥ ११ ॥ ३६. सव्वष्पगं विउक्कस्सं सव्वं णूमं विहूणिया । अप्पत्तियं अकम्मंसे एयमट्ठ मिगे चुए ॥ १२ ॥ ४०. जे एतं णाभिजाणंति मिच्छद्दिट्ठी अणारियां । मिगा वा पासबद्धा ते घायमे संतऽणंतसो ॥ १३ ॥ ४१. माहणा समणा एगे सब्वे णाणं सयं वदे । सव्वलोगे वि जे पाणा न ते जाणंति किंचणं ॥ १४ ॥ ८ (क) सूत्रकृतांग चूर्णि (मूलपाठ टिप्पण) पृष्ठ ६
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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