SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ आत्मषष्ठवाद सूत्रकृतांग-प्रथम अध्ययन समय १५. सति पंच महम्भूता इहमेगेस आहिता । आयछट्ठा पुणेगाऽऽह आया लोगे य सासते ॥१५॥ १६. वुहओ ते ण विणस्संति नो य उप्पज्जए असं सव्वे विसम्वहा भावा नियतीभावमागता ॥ १६॥ १५. इस जगत् में पाँच महाभूत हैं और छठा आत्मा है, ऐसा कई वादियों ने प्ररूपण किया ( कहा ) । फिर उन्होंने कहा कि आत्मा और लोक शाश्वत - नित्य हैं । १६. ( सहेतुक और अहेतुक) दोनों प्रकार से भी पूर्वोक्त छहों पदार्थ नष्ट नहीं होते, और न ही असत्-अविद्यमान पदार्थ कभी उत्पन्न होता है । सभी पदार्थ सर्वथा नियतीभाव नित्यत्व को प्राप्त होते हैं । विवेचन - आत्मषष्ठवाव का निरूपण- इन दो गाथाओं में आत्मषष्ठवादियों की मान्यता का निरूपण है । वृत्तिकार के अनुसार वेदवादी सांख्य और शैवाधिकारियों (वैशेषिकों) का यह मत है । ५२ प्रो० हर्मन कोबी इसे चरक का मत मानते हैं । बौद्ध ग्रन्थ 'उदान' में आत्मा और लोक को शाश्वत मानने वाले कुछ श्रमण-ब्राह्मणों का उल्लेख आता है । ५३ यहाँ शास्त्रकार ने आत्मषष्ठवाद की ५ मुख्य मान्यताओं का निर्देश किया है (१) अचेतन पाँच भूतों के अतिरिक्त सचेतन आत्मा छठा पदार्थ है, *" (२) आत्मा और लोक दोनों नित्य हैं, (३) छहों पदार्थों का सहेतुक या अहेतुक किसी प्रकार से विनाश नहीं होता, (४) असत् की कभी उत्पत्ति नहीं होती और सत् का कभी नाश नहीं होता, (५) सभी पदार्थ सर्वथा नित्य हैं । आत्मा और लोक सर्वथा शाश्वत : क्यों और कैसे ? पूर्वोक्त भूत-चैतन्यवादियों आदि के मत में जैसे इन्हें अनित्य माना गया है, इनके मत में इन्हें सर्वथा नित्य माना गया है। इनका कहना है - सर्वथा अनित्य मानने से बंध और मोक्ष की व्यवस्था नहीं बन सकती । इस कारण ये आत्मा को आकाश की तरह सर्वव्यापी और अमूर्त होने से नित्य मानते हैं, तथा पृथ्वी आदि पंचमहाभूतरूप लोक को भी अपने स्वरूप से नष्ट न होने के कारण अविनाशी (नित्य) मानते हैं । ५२ एकेषां वेदवादिनां सांख्यानां शेवाधिकारिणाञ्चैतद् आख्यातम् । ५३ (क) This is the opinion expressed by 'Charaka' - सूत्र० वृत्ति पत्र२४ - प्रो० हर्मन जेकोबी —The sacred Book of the East VOI.XLV, पृ० 237 (ख) “सन्ति पनेके समणब्राह्मणा एवं वादिनो एवं दिट्ठिनो - सस्सतो अत्ता च लोको च, इदमेव मोघमति ।' - उदान पृ० १४६ ५४ आत्मा षष्ठः कोऽर्थः ? यथा पंचमहाभूतानि सन्ति, तथा तेभ्यः पृथग्भूतः षष्ठः आत्माख्यः पदार्थोऽस्तीति भावः । - दीपिका
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy