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________________ ( ४५ ) सूत्रांक ५५८-५६७ ५६८-५७३ ५७४-५७८ ४१८ ४२१ ४२३ ४२५ ४२७-४२८ ४२६ ५८०-५८४ ५८५-५६६ ५६७-६०६ ४३५ ४४०-४४१ ४४२ ६०७-६११ ६१२-६२१ ६२२-६२४ ६२५-६२६ ६२७-६३१ कुसाधु के कुशील एवं सुसाधु के शील का यथातथ्य निरूपण साधु की ज्ञानादि साधना में तथ्य-अतथ्य-विवेक सुसाधु द्वारा यथातथ्य धर्मोपदेश के प्रेरणासत्र साधु धर्म का यथातथ्य रूप में प्राण प्रण से पालन करे ग्रन्थ : चतुर्दश अध्ययन : पृष्ठ ४२७ से ४३६ प्राथमिक ग्रन्थ त्यागी के लिए गुरुकुलवास का महत्व और लाभ गुरुकुलवासी साधु द्वारा शिक्षा ग्रहण विधि गुरुकुलवासी साधु द्वारा भाषा-प्रयोग के विधि-निषेध सूत्र जमतीत : पंचश अध्ययन : पृष्ठ ४४० से ४५० प्राथमिक अनुत्तर ज्ञानी और तत्कथित भावनायोग साधना विमुक्त मोक्षाभिमुख और सांसारान्तकर साधु कौन ? मोक्ष प्राप्ति किसको सुलभ, किसको दुर्लभ मोक्ष-प्राप्त पुरुषोत्तम और उसका शाश्वत स्थान संसार पारंगत साधक की साधना के विविध पहलू गाथा: षोडष अध्ययन : पृष्ठ ४५१ से ४५८ प्राथमिक माहण-श्रमण परिभाषा स्वरूप माहन स्वरूप श्रमण स्वरूप भिक्षु-स्वरूप निर्ग्रन्थ स्वरूप परिशिष्ट : पृष्ठ ४५६ से ५१५ १ गाथाओं की अकारादि अनुक्रमणिका । २ विशिष्ट शब्द सूची ३ स्मरणीय सुभाषित ४ सूत्रकृतांग के सम्पादन-विवेचन में प्रयुक्त ग्रन्थ सूची ४४७ ४४८ ४४६ ४५१ ४५२ ६३२-६३३ ६३४ ६३५ ४५३ ४५४ ४५५ ४५७ ६३७ ४६१-४७० ४७१-५०६ ५०७-५०६ ५१०-५१५
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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