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सूत्रकृतांग-तेरहवां अध्ययन-याथातथ्य
कुसाध के कुशील एवं ससाधु के शील का यथा तथ्य निरुपण
५५८ अहो य रातो य समुट्ठितेहि, तहागतेहि पडिलब्भ धम्मं ।
समाहिमाघातमझोसयंता, सत्थारमेव फरुमं वयंति ॥२॥ ५५६ विसोहियं ते अणुकाहयंते, जे आतभावेण वियागरेज्जा।
अट्ठाणिए होति बहुगुणाणं, जे णाणसंकाए मुसं वदेज्जा ॥३॥ ५६० जे यावि पुट्ठा पलिउंचयंति, आदाणमढें खलु वंचयंति ।
असाहुणो ते इह साधुमाणी, मायणि एसिति अणंतघंतं ॥४॥ ५६१ जे कोहणे होत जगट्ठभासी, विभोसियं जे उ उदीरएज्जा।
अंधे व रे दंगहं हाय, अविओसिए घासति पावकम्मी ॥५॥ ५६२ जे विगहीए अन्नायभासी, न से समे होति अझंझपत्ते। ____ ओवायकारो य हिरीमणे य, एगतंविट्ठी य अमाइरूवे ॥६॥ ५६३ से पेसले सुहुमे पुरिसजाते, जच्चण्णिए चेव सुउज्जुयारे।
बहुं पि अणुसासिते जे तहच्चा, समे हु से होति अझंझपत्ते ॥७॥ ५६४ जे आवि अप्पं वसुमं ति मंता, संखाय वादं अपरिच्छ कुज्जा। .. तवेण वा हं सहिते त्ति मंता, अण्णं जणं पस्सति बिंबभूतं ।।८।। ५६५ एगंतकूडेण तु से पलेति, ण विज्जती मोणपदंसि गोते।
ज माणणद्वेण विउक्कसेज्जा, वसुमण्णतरेण अबुज्झमाणे ॥६॥ - ५६६ जे माहणे जातिए खत्तिए वा, तह उग्गपुत्ते तह लेच्छती वा।
जे पव्वइते परवत्तभोई, गोत्ते ण जे थन्भति माणबद्ध ॥१०॥ ५६७ ण तस्स जाती व कुलं व ताणं, णण्णत्थ विज्जा-चरणं सुचिण्णं । . मिक्खम्म जे सेवतिऽगारिकम्म, ण से पारए होति विमोयणाए॥११॥
...५५८. दिन-रात सम्यक् रूप से सदनुष्ठान करने में उद्यत श्रुतधरों तथा तथागतों (तीर्थंकरों से 'श्रुत-चारित्र) धर्म को पाकर तीर्थंकरों आदि द्वारा कथित समाधि (सम्यग्दर्शनादि मोक्षपद्धति) का सेवन न करने वाले कुसाधु (जामालि, बोटिक आदि निन्हव) अपने प्रशास्ता धर्मोपदेशक (आचार्य या तीर्थकरादि) को कठोर शब्द (कुवाक्य) कहते हैं ।