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________________ मग्गो : एगारसमं अज्झयणं मार्ग-ग्यारहवां अध्ययन मार्गसम्बन्धी जिज्ञासा, महत्व और समाधान ४६७. कयरे मग्गे अक्खाते, माहणेण मतीमता। जं मग्गं उज्जु पावित्ता, ओहं तरति दुत्तरं ॥ १ ॥ ४६८. तं मग्गं अणुत्तरं सुद्ध, सव्वदुक्खविमोक्खणं । जाणासि णं जहा भिक्खू, तं णे बूहि महामुणी ॥ २॥ ४६६. जइ णे केइ पुच्छिज्जा, देवा अदुव माणुसा। . तेसिं तु कतरं मग्गं, आइक्ज्ज्ज कहाहि णे ॥३॥ ५००. जइ वो केइ पुच्छिज्जा, देवा अवुव माणुसा। तेसिमं पडिसाहेज्जा, मग्गसारं सुणेह मे ॥ ४॥ . ५०१. अणुपुव्वेण महाघोरं, कासवेण पवेदियं । __ जमादाय इओ पुव्वं, समुदं व ववहारिणो ॥५॥ ५०२. अरिंसु तरंतेगे, तरिस्संति अणागता । तं सोच्चा पडिवक्खामि, जंतवो तं सुणेह मे ॥ ६ ॥ ४६७. अहिंसा के परम उपदेष्टा (महामाहन) केवलज्ञानी (विशुद्ध मतिमान्) भगवान् महावीर ने कौन-सा मोक्षमार्ग बताया है ? जिस सरल मार्ग को पाकर दुस्तर संसार (ओघ) को मनुष्य पार करता है ? ४६८. हे महामुने ! सब दुःखों से मुक्त करने वाले शुद्ध और अनुत्तर (सर्वश्रेष्ठ) उस मार्ग को आप जैसे जानते हैं, (कृपया) वह हमें बताइए। ४६९. यदि कोई देव अथवा मनुष्य हमसे पूछे तो हम उनको कौन-सा मार्ग बताएँ ? (कृपया) यह हमें बताइए।
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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