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________________ गाचा ४६४ से ४७२ अनायास प्राप्त लब्धियों या सिद्धियों से भी लाभ उठाने की मन में इच्छा न करे। प्राप्त शक्तियों या उपलब्धियों को वज्रस्वामीवत् विवेकपूर्वक पचाए ।११ ___गुरु की शुश्रूषा और उपासना में अन्तर-यह है कि शुश्रूषा-गुरु के आदेश-निर्देशों को सुनने की इच्छा है, उसका फलितार्थ है-गुरु की सेवा-वैयावृत्य करके उनके मन को प्रसन्न करना, उनके आदेशों का पालन करना, जबकि उपासना गुरुचरणों में बैठकर ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आराधना करना है, गुरु के शरीर की नहीं, गुणों की उपासना करना ही वास्तविक उपासना है । जैसे कि कहा है-“गुरु की उपासना करने से साधक ज्ञान का भाजन बनता है, ज्ञान-दर्शन-चारित्र में स्थिरतर हो जाता है। वे धन्य हैं जो जीवनपर्यन्त गुरुकुलवास नहीं छोड़ते।" ॥धर्म: नवम अध्ययन समाप्त ॥ 3000 १६ सूत्र कृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक १८४ १७ (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति० १८४ (ख) "नाणस्स होइ भागी, थिरयरओ दसणे चरित्तेय । धन्ना आवकहाए गुरुकुलवासं न मुञ्चति । -सू० कु० शी० वृत्ति पत्रांक १८५ में उद्धृत
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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