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________________ कुशील परिभाषित (कुशील परिभाषा)-सप्तम अध्ययन प्राथमिक । सूत्रकृतांग सूत्र (प्र० श्रु०) के सप्तम अध्ययन का नाम कुशील-परिभाषित या कुशील परिभाषा' है। - 'शील' शब्द स्वभाव, उपशमप्रधान चारित्र, सदाचार, ब्रह्मचर्य आचार-विचार आदि अर्थों में प्रयुक्त होता है। चेतन अथवा अचेतन, जिस द्रव्य का जो स्वभाव है, या वस्त्र-भोजनादि के विषय में जिसका जो स्वभाव (प्रकृति) बन गया है, उसे द्रव्य शील कहते हैं। 9 भाव शील दो प्रकार का है-ओघ शील और आभीक्ष्ण्य शील । सामान्यतया जोशील-आचार विचार (अच्छा या बुरा) पालन किया जाता है, उसे ओघ भावशील कहते हैं, परन्तु वही शील निरन्तर क्रियान्वित किया जाता है, तब वह आभीक्ष्ण्य भाव शील कहलाता है। 0 क्रोधादि कषाय, चोरी, परनिन्दा, कलह अथवा अधर्म में प्रवृत्ति अप्रशस्त भाव शील है, और अहिंसादि धर्म के विषय में, सम्यग्ज्ञान, विशिष्ट तप, सम्यग्दर्शन आदि के विषय में प्रवृत्ति प्रशस्त भावशील है। । प्रस्तुत अध्ययन में आचार-विचार के अर्थ में भाव शोल को लेकर सुशील और कुशील शब्द विव क्षित है । जिसका शील प्रशंसनीय है, शुद्ध है, धर्म और अहिंसादि से अविरुद्ध है लोकनिन्द्य नहीं है, वह सुशील है, और इसके विपरीत कुशील है। । वैसे तो कुशील के अगणित प्रकार सम्भव है, परन्तु यहाँ उन सबको विवक्षा नहीं है। । प्रस्तुत अध्ययन में तो मुख्यतया साधुओं की सुशीलता और कुशीलता को लेकर ही विचार किया गया है । वृत्तिकार के अनुसार ध्यान, स्वाध्याय आदि तथा धर्मपालन के आधार रूप शरीर रक्षणार्थ मुख्यतया आहार प्रवृत्ति को छोड़कर साधुओं की और कोई प्रवृत्ति नहीं । अप्रासुक एवं उद्गमादि दोषयुक्त आहार सेवन करना अहिंसा और साधुधर्म की दृष्टि से विरुद्ध है । अतः जो सचित्त जल, अग्नि, वनस्पति आदि का सेवन करते हैं, इतना ही नहीं, अपने धर्मविरुद्ध आचार को स्वर्ग-मोक्षादि का कारण बताते हैं, वे कुशील हैं। -सू० कृ० मूल पाठ टिप्पण पृ० ६७ १ वृत्तिकार के अनुसार अध्ययन का नाम 'कुशीलपरिभाषा' है। २ (क) सूत्रकृतांगनियुक्ति गा० ८६-८७, ८८ (ख) सूत्रकृतांग शीलांकवृत्ति पत्रांक १५३-१५४
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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