SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 374
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा ३६६ से ३७५ ३२५ (भवनपतिजाति के) सुपर्ण (कुमार) देव आनन्द का अनुभव करते हैं, अथवा जैसे वनों में नन्दनवन (देवों के क्रीड़ास्थान) को श्रेष्ठ कहते हैं, इसी तरह ज्ञान और चारित्र में प्रभूतज्ञानी (अनन्तज्ञानी) भगवान महावीर को सबसे प्रधान (सर्वश्रेष्ठ) कहते हैं। ३७०. शब्दों में जैसे मेघ गर्जन प्रधान है, तारों में जैसे महाप्रभावशाली चन्द्रमा श्रेष्ठ है, तथा सुगन्धों में जैसे चन्दन (सुगन्ध) को श्रेष्ठ कहा है, इसी प्रकार मुनियों में कामनारहित (इहलोक-परलोक के सुख की आकांक्षा सम्बन्धी प्रतिज्ञा से रहित) भगवान महावीर को श्रेष्ठ कहा है। ३७१. जैसे समुद्रों में स्वयंम्भूरमण समुद्र श्रेष्ठ है, नागों (नागकुमार देवों) में धरणेन्द्र को श्रेष्ठ कहा है, एवं इक्षुरसोदक समुद्र जैसे रसवाले समस्त समुद्रों को पताका के समान प्रधान है, इसी तरह विशिष्ट (प्रधान) तपोविशेष (या उपधानतप) के कारण (विश्व की त्रिकालावस्था के ज्ञाता) मुनिवर भगवान महावीर समग्रलोक को पताका के समान मुनियों में सर्वोपरि हैं । ३७२. हाथियों में (इन्द्रवाहन) ऐरावत हाथी को प्रधान कहते हैं; मृगों में मृगेन्द्र (सिंह) प्रधान है, जलों-नदियों में गंगानदी प्रधान है, पक्षियों में वेणुदेव 'गरुड़पक्षी' मुख्य है, इसी प्रकार निर्वाणवादियों में-मोक्षमार्ग नेताओं में ज्ञातृ पुत्र भगवान महावीर प्रमुख थे। ३७२. जैसे योद्धाओं में प्रसिद्ध विश्वसेन (चक्रवर्ती) या विष्वक्सेन (वासुदेव श्री कृष्ण) श्रेष्ठ है, फूलों में जैसे अरविन्द कमल को श्रेष्ठ कहते हैं और क्षत्रियों में जैसे दान्तवाक्य (चक्रवर्ती) या दन्तवक्त्र (दन्तवक्र राजा) श्रेष्ठ है, वैसे ही ऋषियों में वर्धमान महावीर श्रेष्ठ है। ३७४. (जैसे) दानों में अभयदान श्रेष्ठ है, सत्य वचनों में निष्पाप (जो परपीड़ा-उत्पादक न हो) सत्य (वचन) को श्रेष्ठ कहते हैं, तपों में ब्रह्मचर्य उत्तम तप है, इसी प्रकार लोक में उत्तम श्रमण ज्ञातपुत्र महावीर-स्वामी हैं। ३७५. जैसे समस्त स्थिति (आयु) वालों में सात लव की स्थिति वाले पंच अनुत्तर विमानवासी देव श्रेष्ठ हैं, जैसे सुधर्मासभा समस्त सभाओं में श्रेष्ठ है, तथा सब धर्मों में जैसे निर्वाण (मोक्ष) श्रेष्ठ धर्म है, इसी तरह (ज्ञानियों में) ज्ञातपुत्र महावीर से बढ़कर (श्रेष्ठ) कोई ज्ञानी नहीं है। विवेचन-विविध उपमानों से भगवान की श्रेष्ठता-प्रस्तुत १० सूत्रगाथाओं (सू० गा० ३६६ से ३७५ तक) में विविध पदार्थों से उपमित करके भगवान महावीर की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया गया है। संसार के सर्वश्रेष्ठ माने जाने वाले पदार्थों से उपमा देकर भगवान की विभिन्न विशेषताओं. महत्ताओं और श्रेष्ठताओं का निम्नोक्त प्रकार से निरूपण किया हैं। (१) सर्वाधिक प्राज्ञ भगवान महावीर मुनियों में श्रेष्ठ हैं, जैसे दीर्घाकार पर्वतों में निषध और वलयाकार पर्वतों में रुचक है। (२) भगवान का सर्वोत्तम ध्यान शुक्लध्यान है, जो शंख, चन्द्र आदि अत्यन्त शुक्ल वस्तुओं के समान विशुद्ध और सर्वथा निर्मल था। (३) भगवान् ने क्षायिक ज्ञानादि के ६ सूयगडंगसुत्तं मूलपाठ (टिप्पणयुक्त) पृ० ६५-६६ का सारांश
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy