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द्वितीय उद्देशक : गाथा २९६ से २९६
(१०) मनोज्ञ शब्द रूप, रस, गन्ध और स्पर्श का आसक्तिपूर्वक सेवन-उपभोग करे।'' ___निष्कर्ष यह है, इन दस प्रकार की ब्रह्मचर्यबाधक परक्रियाओं का सर्वथा परित्याग करने की प्रेरणा भी शास्त्रकार का आशय हो सकता है।
पाठान्तर और कठिन शब्दों को व्याख्या-णिलिज्जेज्जा=वृत्तिकार के अनुसार-निलीयेत=लीन-आश्रित -संसक्त हो, आश्रय ले या आश्लेष करे, सम्बाधन (पीड़न या मर्दन) करे, या स्त्री आदि का स्पर्श करे ।१, चूर्णिकार केअनुसार-णिलेज ति हत्यकम्म न कुर्यात् । निलंजनं नाम स्पर्श करणं अधवा स्वेन पाणिना तं प्रदेशमपि न लीयते । अर्थात्--ण णिलेज्ज का अर्थ है-हस्तकर्म न करे अथवा निलंजन कहते हैं-स्पर्श करने को। (स्त्री आदि का स्पर्श न करे) अथवा अपने हाथ से उस गुह्यप्रदेश का पीड़न (मर्दन) न करे। से भिक्खू= भिक्षु, चूर्णिकारसम्मत पाठान्तर है-सभिक्खू । अर्थ किया है-'सोमणो भिक्ख समिक्खू' अर्थात्-अच्छाभ भिक्षु ।
द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥ स्त्री परिज्ञा : चतुर्थ अध्ययन सम्पूर्ण ॥
१० आलयो थीजणाइण्णने, थीकहाय मणोरमा ।
संथको चेव नारीणं, तासि इंदियदरिसणं ॥११॥ कुइयं रुइयं गीयं हासि-यं भुत्तासियाणिय। पणीय भत्तपाणं च अइमाय पाणभोयणं ॥१२॥ गत्तभूसणमिटुं च कामभोगा य दुज्जया।
नरस्सत्तगवेसिस्सं विसं तालउडं जहा ॥१३॥ ११ सू० कृ० शीलांक वृत्ति पत्रांक १२०
- उत्तरा० अ०१६