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________________ २२६ सूत्रकृतांग : तृतीय अध्ययन-उपसर्गपरिज्ञा ___ रामगुत्त-रामपुत्त-इसिभासियाइं (ऋषिभाषित) के रामपुत्तिय नामक २३वें अध्ययन में रामपुत्त नाम मिलता है । वृत्तिकार के अनुसार रामगुप्त एक राजर्षि थे। बाहुक-आईतऋषि-इसिभासियाई के १४वें बाहुक अध्ययन में बाहुक को आहतऋषि कहा गया है । महाभारत के तीसरे आरण्यकपर्व में नल राजा का दूसरा नाम 'बाहक' बताया गया है, पर वह तो राजा का नाम है। तारागण-तारायण या नारायण ऋषि-इसिभासियाइं के ३६वें तारायणिज्ज नामक अध्ययन में तारायण या तारागण ऋषि का नामोल्लेख आता है। आसिल (असित ?) देविल (देवल) ऋषि-वत्तिकार ने असिल और देविल दोनों अलग-अलग नाम वाले ऋषि माने हैं। किन्तु 'इसिभासियाइ' के ततीय दविल अध्ययन में असित दविल आहेतऋषि के रूप में एक ही ऋषि का नामोल्लेख है। सूत्रकृतांग चणि का भी यही आशय प्रतीत होता है। महाभारत में भी तथा भगवद्गीता में आसित देवल के रूप में एक ही नाम का कई जगह उल्लेख है। इस पर से ऋषि का देवल गोत्र और असित नाम प्रतीत होता है। वायुपुराण के प्रथम खण्ड में ऋषिलक्षण के प्रकरण के अनुसार असित और देवल ये दोनों पृथक्-पृथक् ऋषि मालूम होते हैं। दीवायण महारिसी और पारासर-इसिभासियाइं के ४०वें 'दीवायणिज्ज' नामक अध्ययन में द्वीपायन ऋषि का नामोल्लेख मिलता है, वहाँ पाराशर ऋषि का नामोल्लेख नहीं है। महाभारत में 'द्वैपायन' ऋषि का नाम मिलता है। व्यास, पाराशर (पराशर पुत्र) ये द्वैपायन के ही नाम हैं। ऐसा वहाँ उल्लेख है। वृत्तिकार ने द्वैपायन और पाराशर इन दोनों का पृथक्-पृथक् उल्लेख किया है। इसी तरह औपपातिक II देखिये सुत्तपिटक चरियापिटक पालि, निमिराज चरिया (पृ० ३६०) में "पुनापरं यदा होमि मिथिलायं पुरिसुत्तमे । निमि नाम महाराजा, पण्डितो कुसलस्थिको ॥१॥ तदाहं मापयित्वा न चतुस्सालं चतुम्मुखं । तत्थ दानं पवत्तेसि मिगपक्खिनरादिनं । २॥" III देखिए-उत्तराध्ययन नमि पविज्जा अध्ययन में तओ नमि रायरिसी देविदं इण मव्ववी ३ रामगुत्ते-(1) इसिभासियाई अ० १३ रामपुत्तिय अध्ययन देखिये। (II) रामगुप्तश्च राजर्षिः -वृत्तिकार शीलांकाचार्य ४ इसिभासियाई में १४ वा अध्ययन बाहकज्झयणं देखिये । ५ इसिभासियाइं में ३६ वा तारायणिज्जज्झयणं देखिये । ६ (क) (I) इसिभासियाई में तीसरे दविलज्झयणं में-"असिएण दविलेणं अरहता इसिणा बुइतं ।" (II) आसिलो नाम महर्षिः देविलो द्वैपायनश्च तथा पाराशराख्यः ।। -शीला० वृत्ति (III) असितो देवलो व्यासः स्वयंचव ब्रवीमि मे ॥ -भगवद्गीता अ० १०/१३ (IV) वायुपुराण में ऋषि लक्षण में काश्यपश्चैव वत्सारो विभ्रमोरैभ्य एव च । असितो देवलश्चैव षडेते ब्रह्मवादिनः ॥ (v) देवलस्त्वसितोऽब्रवीत् (महा० भीष्म पर्व ६१६४१६) "नारदस्य च संवादं देवलस्यासितस्य च ।" (शान्ति पर्व १२।२६७१)
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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