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________________ 900 सूत्रकृतांग-द्वितीय अध्ययन-वैतालिय १५७. सव्वं गच्चा अहिट्ठए, धम्मट्ठी उवहाणवीरिए। गुत्ते जुत्ते सदा जए, आय-परे परमाययट्ठिए ॥१५॥ १५६. भगवान् (वीतराग सर्वज्ञ प्रभु) के अनुशासन (आगम या आज्ञा) को सुनकर उस प्रवचन (आगम) में (कहे हुए) सत्य (सिद्धान्त या संयम) में उपक्रम (पराक्रम) करे । भिक्षु सर्वत्र (सब पदार्थों में) मत्सररहित होकर शुद्ध (उञ्छ) आहार ग्रहण करे। १५७. साधु सब (पदार्थों या हेयोपादेयों) को जानकर (सर्वज्ञोक्त सर्वसंवर का) आधार (आश्रय) धर्म का अभिलाषी) रहे; तप (उपधान) में अपनी शक्ति लगाये; मन-वचन-काया की गुप्ति (रक्षा) से युक्त होकर रहे; सदा स्व-पर-कल्याण के विषय में अथवा आत्मपरायण होकर यत्न करे और परम-आयत (मोक्ष) के लक्ष्य में स्थित हो। विवेचन-मोक्षयात्री भिक्षु का आचरण-प्रस्तुत सूत्र गाथाद्वय में मोक्षयात्री भिक्षु के लिए ग्यारह आचरणसूत्र प्रस्तुत किये गये हैं-(१) सर्वज्ञोक्त अनुशासन (शिक्षा, आगम या आज्ञा) को सुने, (२) तदनुसार सत्य (सिद्धान्त या संयम) में पराक्रम करे, (३) सर्वत्र मत्सरहित (रागद्वेष रहित या क्षेत्र, गृह, उपाधि, शरीर आदि पदार्थों में लिप्सारहित) होकर रहे, (४) शुद्ध भिक्षुचर्या करे; (५) हेय-ज्ञेय-उपादेय को जानकर सर्वज्ञोक्त संवर का ही आधार ले; (६) धर्म से ही अपना प्रयोजन रखे, (७) तपस्या में अपनी शक्ति लगाये; (८) तीन गुप्तियों से युक्त होकर रहे; (६) सदैव यत्नशील रहे; (१०) आत्मपरायण या स्व-पर-हित में रत रहे, और (११) परमायत-मोक्षरूप लक्ष्य में दृढ़ रहे ।२६ भगवानुशासन-श्रवण क्यों आवश्यक ?-मोक्षयात्री के लिए पाथेय के रूप में सर्वप्रथम भगवान का अनुशासन-श्रवण करना इसलिए आवश्यक है कि जिस मोक्ष की वह यात्रा कर रहा है, भगवान उस मोक्ष के परम अनुभवी, मार्गदर्शक हैं, क्योंकि ज्ञान, वैराग्य, धर्म, यश, श्री, समग्र ऐश्वर्य एवं मोक्ष इन छ: विभूतियों से वे (भगवान) सम्पन्न होते हैं । वे वीतराग एवं सर्वज्ञ होते हैं, वे निष्पक्ष होकर वास्तविक मोक्ष-मार्ग ही बताते हैं । उनकी आज्ञाएँ या शिक्षाएँ (अनुशासन) आगमों में निहित हैं, इसलिए गुरु या आचार्य से उनका प्रवचन (आगम) सुनना सर्वप्रथम आवश्यक है। सुनकर ही तो साधक श्रेय-अश्रेय का ज्ञान कर सकता है ।२७ सर्वोक्त सत्य-संयम में पराक्रम करे-जब श्रद्धापूर्वक श्रवण होगा, तभी साधक उस सुने हुए सत्य को सार्थक करने हेतु अपने जीवन में उतारने का पुरुषार्थ करेगा। अन्यथा कोरा श्रवण या कोरा भाषण तो व्यर्थ होगा। शास्त्र में बताया है-"सच्चे सच्चपरक्कमे" साधु सत्य में सच्चा पराक्रम करे।८ परन्तु साधक का सत्य-संयम में पुरुषार्थ मत्सरहित-राग-द्वष रहित-होगा तभी वह सच्चा पुरुषार्थ होगा। २६ सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक ७४ २७ (क) सूत्रकृतांग अमरसुखबोधिनी व्याख्या पु० ३८६ के अनुसार (ख) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक ७४ (ग) सोच्चा जाणइ कल्लाणं सोच्चा जाणइ पावर्ग-दशवै० ४।११ २८ उत्तराध्ययन सूत्र अ० १८/२४
SR No.003438
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages565
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_sutrakritang
File Size11 MB
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