________________
सूत्रकृसांग-प्रथम अध्ययन-समय
ने कहा- "बंभउत्ते ति आवरे।" देवउत्ते की तरह बंभउत्ते के भी तीन संस्कृत रूप होते हैं और अर्थ भी उसी अनुसार तीन होते हैं।
ईश्वरकृत लोक-उस युग में ईश्वर कर्तृत्ववादी मुख्यतया तीन दार्शनिक थे-वेदान्ती, नैयायिक और वैशेषिक । वेदान्ती ईश्वर (ब्रह्मा) को ही जगत् का उपादान कारण एवं निमित्तकारण मानते हैं। उनके द्वारा अनेक प्रमाण भी प्रस्तुत किये जाते हैं। बृहदारण्यक उपनिषद में देखिए-“पहले एकमात्र यह ब्रह्म ही था, वही एक सत् था, जिसने इतने श्रेय रूप क्षेत्र का सृजन किया, फिर क्षत्राणी का, जिसने वरुण, सोम, रुद्र, पर्जन्य, यम, मृत्यु, ईशान आदि देवता उत्पन्न किये। फिर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य
और अन्त में सबके पोषक शूद्र वर्ण का सृजन किया।".."तैतिरीयोपनिषद में कहा है--"जिस ब्रह्म-ईश्वर से ये प्राणी उत्पन्न होते हैं, जिससे ये भूत (प्राणी) उत्पन्न होकर जीवित रहते हैं, जिसके कारण प्रयत्न (हलन-चलन आदि प्रवृत्ति) करते हैं, जिसमें विलीन हो जाते हैं, उन सबका तादात्म्य-उपादान कारण ईश्वर (ब्रह्म) ही है।"
बृहदारण्यक में ही आगे कहा है-'उस ब्रह्म के दो रूप हैं-मूर्त और अमूर्त, अथवा मर्त्य और अमृत, जिसे यत् और त्यत् कहते हैं । वही एक ईश्वर सब प्राणियों के अन्तर में छिपा हुआ है।' बादरायण व्यास-रचित ब्रह्मसूत्र के प्रथम सूत्र में बताया-"सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय इसी से
हैं।" वेदान्ती अनुमान प्रमाण का प्रयोग भी करते हैं-'ईश्वर जगत् का कर्ता है, क्योंकि वह चेतन है, जो-जो चेतन होता है, वह वह कर्ता होता है जैसे-कुम्हार घट का कर्ता है।
दूसरे कर्तृत्ववादी नैयायिक हैं, नैयायिक मत अक्षपाद ऋषि प्रतिपादित हैं। इस मत के आराध्य देव महेश्वर (शिव) हैं, महेश्वर ही चराचर सृष्टि का निर्माण तथा संहार करते हैं।' श्वेताश्वतर उपनिषद में बताया है-वही देवों का अधिपति है, उसी में सारा लोक अधिष्ठित है । वही इस द्विपद चतुष्पद पर शासन करता हैं। वह सूक्ष्म रूप में कलिल (वीर्य) में भी है, विश्न का स्रष्टा है, अनेक रूप है। वही विश्व का एकमात्र परिवेष्ठिता (अपने में लपेटने वाला) है, उस शिव को जानकर (प्राणी) परम
६. (क) सूत्रकृतांग अमरसुखबोधिनी व्याख्या पृ० २०६
(ख) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक ४२ के आधार पर (ग) वर्तमान में वैदिक धर्म-सम्प्रदायों के अतिरिक्त इस्लाम धर्म, ईसाई धर्म आदि भी ईश्वरकर्तृत्ववादी है, परन्तु
उनके पास अपने-अपने धर्म-ग्रन्थों में लिखित ईश्वरकर्तृत्ववाद पर आँखें मूदकर श्रद्धा करने के अतिरिक्त
कोई विशेष प्रमाण, युक्ति या तर्क नहीं हैं। १० (क) ब्रह्म वा इदमग्र आसीदेकमेव, तदेकं सन्न व्यभवतच्छ यो रूपमत्यसृजत क्षत्र, यान्येतानि देवता क्षवाणीन्द्रो
वरुणः सोमो रुद्रः पर्जन्यो यमो मृत्युरीशान इति तस्मात् क्षत्रात्परं नास्ति, तस्माद् बाह्मणः.."स विशमसृजत यान्येतानि देवजातानि गणश आख्यायन्ते वसवो रुद्रा आदित्या विश्वे देवा मरुत इति ॥१२॥"स शौद्र वर्णमसृजत पूषणम् । तदेतद् ब्रह्म क्षत्र विट् मुद्रः॥
-बृहदा० अ० १ ब्रा०४ ११ यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते । येन जातानि जीवन्ति । यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति तद्विजिज्ञासस्व तद् ब्रह्मति ।...
-तैत्तिरीयोपनिषद् ३ भृगुवली