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________________ ५४० । पश्चिमी भारत की यात्रा और समृद्धि की प्राप्ति होती है, उनका मन सदैव परमात्मतत्त्व के चिन्तन में लीन रहता है। बहुत प्राचीन समय में गिरनाल पर कीतिमान् हरिवंश ने महान् यज्ञों और उत्सवों का आयोजन किया। कालान्तर में भी बहुत से यदु [वंशी] राजाओं ने इस पर्वत पर उदार धर्म-कार्य सम्पन्न करके स्वर्ग में अपने लिए आनन्ददायक भवनों की प्राप्ति की । बहुत-सी पीढियों बाद इस यदुवंश में माण्डलिक-नामक राजा उत्पन्न हुआ जिसके गुरु हेमाचार्य ने इस ऊंचे (पर्वत) पर श्रीनेमनाथ की मूर्ति प्रतिष्ठित की। अब उस राजा के पुण्य कार्यों का वर्णन करते हैं-वह महान् वीर और प्रजापालक प्रसिद्ध राजा था। उसका पुत्र महीपाल कहलाता था । अपने सद्गुणों के कारण वह इस पृथ्वी पर देवता के समान और उदारता के कारण कल्पवृक्ष के समान माना जाता था। फिर, खंगार राजा ने राज्य किया, उसके राज्य में बहुत समृद्धि हुई । उसका उत्तराधिकारी जयसिंह राजा हुआ, वह समस्त राजाओं का अग्रणी अलङ्कारभूत और राजहंस के समान सुन्दर था। फिर, इस पृथ्वी का पालक और अन्याय का नाश करने वाला राजा महीपाल हा । उस के पुत्र माण्डलिक ने सिन्धु के तट-पर्यन्त वसुन्धरा पर राज्य किया, उसकी कीर्ति सर्वत्र फैली हुई थी, उराने धर्म-पूर्वक राज्य किया, वह दयावान्, न्यायी और दीन-दुर्बलों का रक्षक था। इस प्रकार उसने सोरठ देश पर आनन्दपूर्वक राज्य किया। बड़े-बड़े और सुप्रसिद्ध राजा इस माण्डलिक के दरबार में उपस्थित होते थे और दुष्ट राजाओं के गर्व एवं अभिमान को उसने मिटा दिया था; इस बुद्धिमान् और धर्मात्मा राजा ने बहुत वर्षों तक राज्य किया। यहां एक नगर भी है, जिसमें समस्त ऋद्धियां निवास करती हैं और यह मूर्तिमान् उत्कर्ष के समान है। यहां के उत्तम शासन-प्रबन्ध से प्राकृष्ट होकर देश के सभी भागों से पा-या कर लोग बस गए हैं। यहां पर बहुत से मुकुटधारी राजा सपरिवार निवास करते हैं। अनेक कुए, जलाशय, विविध भवन और देवालय भी यहां पर विद्यमान हैं। इस रैवताचल की निरन्तर झांकी के कारण यहां के निवासियों की समृद्धि अत्यधिक बढ़ रही है। अनन्तर-काल में भी यदुवंशी राजा हुए जिन्होंने पवित्र जिन [ देव ] के आगे मस्तक झुकाया और इसके फलस्वरूप समृद्धि का उपभोग किया तथा न्यायपूर्वक प्रजा पर शासन किया। विक्रमादित्य के वर्ष १२०४ (११४८ ई०) में कार्तिक शुद ६ ठ (कार्तिक के शुक्लपक्ष) को चन्द्रप्रसाद [चण्डप्रसाद] राजा हुआ; फिर सामन्त भोज, पाशराज नन्द और कुमारदेवी; उनका पुत्र श्री लूनीराम; श्रीमालकुल; श्रीतेजपाल, जिसक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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