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प्रकरण - २३; भायाव का संगठन और अधिकार (४६१ जाड़ेचा रावों द्वारा जागीरों के पट्टे स्वीकार करने में पुनर्ग्रहण सम्बन्धी विषय का कोई विचार या भेद नहीं किया जाता; इनमें मेवाड़ की तरह 'काला पट्टा' या 'चूड़ा-उतार'" अर्थात् ग्रहीता के जीवनकाल पर्यन्त अथवा किसी भी समय पुनर्ग्राह्य जागीर जैसा भेद नहीं होता; वहाँ इस प्रकार की अनेक जागीरें हैं। यहाँ रतनजी के शब्दों में 'वह जागीर सदा-सर्वदा के लिए होती है चाहे भंगी को ही क्यों न दी गई हो; इस पर उसका सर्वाधिकार होता है।' संक्षेप में, इन जागीरों पर उनका उतना ही स्वतन्त्र अधिकार होता है जितना कि इंगलैण्ड में किसी लॉर्ड का अपनी जायदाद पर ।
जागीरदारों की भूमि एवं अधिकारों के विषय में राजा द्वारा हस्तक्षेप करने का एकमात्र उदाहरण उसका वह अधिकार है जिसके द्वारा वह अधीनस्थ जागीरों के आपसी झगड़ों का निर्णय करता है; उसका यह अधिकार जागीर. दारों द्वारा स्वेच्छा से स्वीकार किया गया है परन्तु यह उन्हीं तक सीमित है जिनको खंगार के राजा स्वीकृत होने के अनन्तर राज्य की ओर से जागोरी भूमि दी गई हो। फिर भी, राव का कोई भी कार्य सरदारों की बड़ी समिति के परामर्श से मुक्त नहीं है इसलिए ऐसी अपीलों को, वास्तव में, उन लोगों की अपने आप से ही अपील समझनी चाहिए।
उत्तराधिकार का एक विवादास्पद विषय इस समय विचाराधीन है जिसमें राव अथवा उसकी अवयस्कता में राज्य-सञ्चालिका समिति का सरदारों की बड़ी सभा से मतभेद है। पुराने और स्वतंत्र जाड़ेचों की खाप में से एक छोटे जागीरदार की मृत्यु हो गई। उसके कोई असली सन्तान या नज़दीकी रिश्तेदार नहीं है केवल एक भाटिया जाति की रखेल स्त्री से उत्पन्न अवैध पुत्र अवश्य है। ऐसी विकट परिस्थिति में दोनों ही पक्ष सिद्धान्तों की उपेक्षा कर रहे हैंराज्य की ओर से तो सब का सामान्य वारिस होने की दलील देकर उस जायदाद को खालसा (राज्य द्वारा पुनहीत) करने का नया हक जाहिर किया जा रहा है, जो उनकी दी हुई नहीं है। उधर, सरदार लोग ऐसी गैर कानूनी परम्परा को
' रियासत के स्वामी द्वारा राजवंश से इतर राजपूतों को दिया हुआ पट्टा 'काला पट्टा'
कहलाता था। ऐसी जागीर कभी भी पुनगृहीत की जा सकती थी। २ प्रत्येक उपभोक्ता की मृत्यु पर जागीर का कोई अंश कम कर दिया जाता था। इस प्रकार वह जागीर उत्तरोत्तर कम हो जाती थी। इसको 'चूड़ा-उतार पट्टा' कहते हैं क्योंकि जैसे हाथ की मोटाई के अनुसार एक के बाद एक चूड़ी छोटी होती चली जाती है वैसे ही ऐसी जागीर भी कम होती जाती थी
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