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________________ १२२ ] प्रकाश की शक्ति बढ़ती गई, धुंध को श्रृंखला टूटती चली गई और अन्त में यह विचित्र एवं रहस्यमय श्राकृतियों में विभक्त हो कर अनस्तित्व में विलीन हो गई । मैंने ऐसे ही और इस से भी बढ़ कर दो दृश्य और देखे हैं- एक मरुस्थल के उत्तर में हिंसार नामक स्थान पर और दूसरा कोटा में, जिनका वर्णन मैंने अन्यत्र' किया है । पश्चिमी भारत की यात्रा ३ हमने जैर (Jair ) गांव की पहाड़ी पर चढ़ाई शुरू की, जो दोनों पवित्र पर्वतों की संयोजक श्रृंखला है । थूर एवं खजूर से ढँकी हुई इस पांच मील ऊँची भूमि को पार कर के हम अपने ठहरने के स्थान, देवला ग्राम में पहुँचे जिसका, वहाँ के ठाकुर के प्रतिरिक्त, कोई महत्त्व नहीं था । अब भी उस के गढ़ के चारों ओर छोटा मिट्टी का परकोटा है जिसमें बुर्जे भी हैं और इसके स्वामी को इस पर उतना ही गर्व है जितना कि लुई चौदहवें को अपने किले लिले ( Lille) + पर था । एक स्वच्छ पानी के छोटे पहाड़ी नाले पर देवला की सरहद पूरी हो जाती है; यहाँ के जो थोड़े-बहुत निवासी हैं वे कुनबी श्रौर कोली जातियों के हैं तथा उनका ठाकुर भी काठी है जिससे हमने तीसरे पहर भेंट की । जैसा, अथवा अधिक आदरसूचक रूप में जेसाजी, अपनी जाति का एक अच्छा नमूना है । उन्होंने अपनी अवस्था पचास वर्ष की बताई परन्तु यदि वह अपनी दाढ़ी के अधकटे बाल, जो एक सप्ताह से बढ़ रहे थे, और काली मूंछें कटा कर चेहरा साफ करा लें तो उनकी इस अवस्था में सहज ही पाँच वर्ष कीं कमी नज़र आने लगे । कुछ देर आराम से बैठ कर वाणी की पूरी स्वतंत्रता का उपयोग करते हुए सच्चे काठी की तरह वह बेरोकटोक बातें करते रहे; तभी मैंने यह पूछ कर बातचीत के सिलसिले को उनके विगत जीवन के विषय में मोड़ दिया, 'क्या आपने इस एकान्त निवास स्थान को छोड़ कर कभी अपने सम्मानपूर्ण शस्त्रों के उपयोग का व्यवसाय नहीं किया ?' तब उस दलदल के अश्वारोही ने बड़ी उदासीनता से उत्तर दिया, 'बहुत थोड़ा, भावनगर, पाटण और झालावाड़ से प्रागे कभी नहीं ।' यदि पाठक मानचित्र देखें तो पता चलेगा कि जेसाजी के 9 एनल्स एण्ड एण्टीक्विटीज़ श्राफ़ राजस्थान, वॉल्यूम १, पृ० ७६८ । यह दुर्गं फ्रांस की राजधानी पेरिस के उत्तर में १५५ मील की रेलवे दूरी पर स्थित है। स्पेन के फिलिप चतुर्थ की मृत्यु के बाद लुई चौदहवें ने लिले के किले पर १६६७ ई० में अधिकार कर लिया था । इसका 'पेरिस-गेट' दरवाजा १६८२ ई० में उसी के सम्मान में पलंण्डर्स. विजय के उपरान्त बनाया गया था । —E. B., Vol. XIV; pp. 641-42 L Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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