SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा के बाजार तक ही सीमित नहीं था वरन् हम यह भी अनुमान लगा सकते हैं कि मुल्तान, सरहिन्द और अन्य उत्तरीय प्रदेशों से भी ( जहाँ अब भी इन पदार्थों का बनना बन्द नहीं हुआ है ) बल्हरों की राजधानी में रेशम आया करता था । प्राचीन पश्चिमीय लेखकों ने प्रायः एकमत होकर सैरिका (Scirca ) की स्थिति चीन देश के दक्षिणपूर्वीय प्रान्तों में मानी है । परन्तु हम यह अनुमान क्यों न करें कि रेशम के बाज़ार के लिए काकेशस (Caucasus) पहाड़ को पार करने का कोई अवसर नहीं था ? सरहिन्द अथवा सिरका - हिन्द अर्थात् हिन्द ( भारत ) के सीमा प्रान्त के सिर से ही रेशम की प्राप्ति होती थी । ' यह भी असंभव नहीं है कि एरियन के रचना काल में पंजाब किसी इण्डोग्रीशिअन अथवा इण्डो-गेटिक राजा के अधिकार में हो, क्योंकि डेरिअस (Darius) के समय से ही, जो इसको पारसी साम्राज्य का सब से अधिक धनी मण्डल ( सूबा) मानता था, पंजाब झगड़े की जड़ रहा है। रेशम के व्यापार के निमित्त ही उज्जैन के पोरस नामक राजा ने ऑगस्टस ( Augustus) के पास एक राजदूत और ग्रोक ( यूनानी) भाषा में लिखा हुआ पत्र भेजा था, इससे विदित होता है कि उस समय इन लोगों का मध्यभारत में पदार्पण हो चुका था । इस राजा को राना ( Rana ) लिखा होने के कारण डॉक्टर विन्सेण्ट ने उसको मेवाड़ के राणाओं का पूर्वज माना है और यह एक विचित्र ही निष्कर्ष निकाला है । अब, यदि राजपूत राजाश्रों में सब से अधिक शक्तिशाली राणाओं और गुजरात के समान हितों के सम्बन्धों का ज्ञात होना सम्भव हो तो हम यह • साबित कर सकते हैं कि बॅरिंगाजा ( Barygaza ) श्रौर नलकुण्डा ( Nalkunda) का व्यापार इतना महत्वपूर्ण था कि इन राजपूत राजाओं और रोम के बादशाह में सम्बन्ध स्थापित होना श्रावश्यक हो गया था । यदि इस प्रारम्भकाल का कोई ऐसा इतिहास प्राप्त हो जाय जिसमें तथ्यों की सत्यता एवं सम्भावना की मात्रा विद्यमान हो तो इस विषय पर कुछ प्रकाश डाला जा सकता है, जो इस समय केवल अनुमान और कल्पना पर आधारित है । पर्याप्त दृढ़ता के साथ हम यह प्रमाणित कर सकते हैं कि 'तत्कालीन राजपूत राजाओं में सबसे अधिक शक्तिशाली राणाओं के हित गुजरात से सम्बन्धित ही नहीं थे' वरन् उन्होंने (राणाओं के रूप में नहीं) वास्तव में, प्रथम बल्हरा राजाओं के रूप ' जैसे लारिस (Larice) 'लार का देश' (Lari-ca-Des) का संक्षिप्त रूप है उसी प्रकार 'सिर' भी राजनैतिक अथवा भौगोलिक सीमा के लिए प्रयुक्त साधारण शब्द है और 'सिर का हिन्द' अर्थात् हिन्द ( भारत ) का सिर (सीमा) का छोटा रूप सिर का (Sirica) हो सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003433
Book TitlePaschimi Bharat ki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJames Taud, Gopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Puratan Granthmala
Publication Year1996
Total Pages712
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy