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________________ आवश्यकताएँ और इच्छाएँ मनुष्य जब तक संसार में रहता है, तब तक उसे जीवन की आवश्यकताएँ घेरे रहती हैं । जीवन को कायम और सक्रिय रखने के लिए उसे कुछ न कुछ चाहिए ही । यह सम्भव नहीं कि शरीर कायम भी रहे और उसकी आवश्यकताएँ न हों । मगर एक बात हमें ध्यान में रखनी चाहिए । बहुत बार मनुष्य अपनी इच्छा, हविस या अपनी आसक्ति को ही अपनी आवश्यकता मान बैठता है । यदि वह उनकी पूर्ति के प्रयत्न में लग जाता है, तो अपनी सारी शक्तियों को उन्हीं को समर्पित कर देता है । वह ज्यों-ज्यों अपनी हवस को पूरा करता जाता है, नयी-नयी हवस उसके मन में पैदा होती जाती है। एक इच्छा पूरी हुई नहीं कि अन्य अनेक नवीन इच्छाएँ उत्पन्न हो गयीं । तो प्रश्न होता कि अब वह अपनी किस-किस इच्छा की पूर्ति करे और किस-किस की नहीं ? और वह इसी प्रश्न में उलझ जाता है । अन्त में वह यही तय करता है कि उसे अपने सभी इच्छाओं की पूर्ति करनी है और परिणाम यह होता है कि वह अपनी सारी जिन्दगी अपनी इच्छाओं की पूर्ति में ही समाप्त कर देता है । जिन्दगी समाप्त हो जाती है परन्तु 37 सि जिन्दगी समाप्त हो जाती है परन्तु इच्छाएँ समाप्त नहीं होती । केसी इच्छाएँ समाप्त
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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