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तुझे आगे जाना है, बहुत आगे जाना है, इतना आगे जाना है, कि जहाँ राह ही समाप्त हो जाती है। तूने जो कुटुम्ब-परिवार पा लिया है, उसी का उत्तरदायित्व तेरे लिए नहीं है। तेरी यात्रा उस छोटे से घेरे से निकल कर अपने आपको विशाल संसार में घुला-मिला देने की है। यही आत्मा के विराट् स्वरूप की प्राप्ति है। जब मनुष्य क्षुद्र से विराट् बन जाता है, तो उसके मानस-सरोवर में उठने वाली अहिंसा और प्रेम की लहरों से समग्र संसार परिव्याप्त हो जाता है ।
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