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कि वह इच्छा, आकांक्षा का परिमाण करे, आसक्ति एवं ममत्व-भावना का परित्याग करने का प्रयत्न करे और अपनी आवश्यकताओं को घटाने का प्रयत्न करे । इच्छा-परिमाण की भावना एवं तदनुरूप किया जाने वाला प्रयत्न अपरिग्रह है, धर्म है और मुक्ति का मार्ग है ।
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