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________________ मनुष्य धन-वैभव एवं पदार्थों का पूर्णतः त्याग नहीं कर सकता । जैसे समुद्र में चलने वाली नौका पानी का परित्याग नहीं कर सकती । सागर को पार करने के लिए पानी का रहना आवश्यक है । परन्तु यदि जल की कुछ लहरें, पानी का थोड़ा-सा प्रवाह, उसमें भर जाए तो नौका के लिए खतरा हो जाएगा । यही स्थिति जीवन की है। भले ही, सारे संसार की संपत्ति मनुष्य के चरण चूम रही हो, परन्तु यदि उसके मन में, विचारों में, जीवन में आसक्ति का, इच्छा का, ममता-मूर्छा का प्रवाह नहीं बह रहा है, तो उसके जीवन के लिए कोई खतरा नहीं है, कोई भय नहीं है। 21
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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