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है। इस प्रकार समाजीकरण का कार्य व्यक्ति के उन गुणों, कुशलताओं,
और अनुशासन को विकसित करना है, जिनकी व्यक्ति को आवश्यकता होती है, उन आकांक्षाओं और मूल्यों तथा रहने के ढंगों को व्यक्ति में समाविष्ट और उत्तेजित करना है, जो किसी विशेष समाज की विशेषता है और विशेषकर उन सामाजिक कार्यों को सिखाना है, जो समाज में रहने वाले व्यक्तियों को करना है। समाजीकरण की प्रक्रिया निरन्तर रूप से व्यक्ति पर बाहर से प्रभाव डालती रहती है । यह केवल बच्चों और देशांतर में रहने वालों को, जो पहली बार समाज में आते हैं, केवल उन्हें ही प्रभावित नहीं करती, बल्कि समाज के प्रत्येक सदस्य को, जीवन पर्यन्त प्रभावित करती है । समाजीकरण की प्रक्रिया उनको व्यवहार के वे ढंग प्रदान करती है, जो समाज और संस्कृति को बनाये रखने के लिए आवश्यक है। व्यक्ति का समाजीकरण :
प्रातीतिक दृष्टि से समाजीकरण एक वह प्रक्रिया है, जो समाज के अन्दर चलती रहती है। यह समाजीकरण की प्रक्रिया उस समय होती है, जब कि वह अपने चारों ओर व्यक्तियों के साथ सामंजस्य स्थापित करने का प्रयत्न करता है । समाज में रहने वाला व्यक्ति अल्प व अधिक रूप में उस समाज के शील, स्वभाव और आदतों को ग्रहण कर लेता है, जिसमें वह रहता है । प्रत्येक व्यक्ति अपने शैशव-अवस्था से ही धीरे-धीरे समाज के नियमों के अनुकूल चलने लगता है । देशान्तर में रहने वाला व्यक्ति, वहाँ के अपने नये समाज में घुल-मिल जाता है । समाजीकरण की यह प्रक्रिया व्यक्ति में आजीवन चलती है । वह जहाँ-जहाँ भी जाता है, जहाँ-जहाँ भी रहता है, वहाँ-वहाँ के समाज के संस्कारों को ग्रहण कर लेता है । हम किसी भी एक व्यक्ति के जीवन
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