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________________ मीमांसा के संबंध में भी समझ लीजिए । पूर्व मीमांसा आचार का प्रतिपादन करती है और उत्तर मीमांसा दर्शन और तर्क का आधार लेकर चलती है। मेरे कहने का अभिप्राय उतना ही है कि प्रत्येक परम्परा का अपना एक दर्शन होता है और प्रत्येक परम्परा का अपना आचार भी होता है । इस धरती पर एक भी संप्रदाय ऐसा नहीं मिलेगा, जिसमें विचार के अनुरूप आचार का और आचार के अनुरूप विचार का प्रतिपादन न किया गया हो । भारतीय परम्परा ही नहीं अपितु बाहर की परम्पराओं में भी हमें यही सत्य उपलब्ध होता है । मुस्लिम संस्कृति के उन्नायक मोहम्मद साहब ने भी जीवन के इन्हीं दोनों पक्षों को स्वीकार किया है । बाइबिल में ईसामसीह ने भी विचार के साथ आचार को स्वीकार किया है । चीन के प्रसिद्ध दार्शनिक कन्फ्यूसियस और लाओत्से ने भी अल्पाधिक रूप में विचार के साथ आचार को मान्यता प्रदान की है। मानव-जीवन की | मैं आपसे यह कह रहा था कि परिपूर्णता विचार मानव-जीवन की परिपूर्णता विचार और आचार और आचार के के समन्वय से ही होती है और आचार के समन्वय से ही । बिना विचार का कुछ भी मूल्य नहीं है। इसी होती है। प्रकार विचार-विहीन आचार का भी कुछ महत्व नहीं रहता । आचार क्या है ? इस अहिंसा में सभी प्रश्न का उत्तर यदि एक ही शब्द में दिया जा धर्मों का समावेश सके, तो वह शब्द अहिंसा ही हो सकता है । हो जाता है। अहिंसा में सभी धर्मों का समावेश हो जाता है क्योंकि धरती के सभी धर्मों ने सीधे रूप में 251
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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