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जीवन कहलाता है। जीवन एकांगी नहीं होना चाहिए । भारतीय संस्कृति में एकांगी जीवन
ज्ञान और क्रिया को आदर्श जीवन नहीं कहा गया है। अनेकांगी तथा विचार और जीवन ही वस्तुतः सच्चा जीवन है । यह आचार दोनों की अनेकांगता श्रुत एवं शील के समन्वय से ही | परिपूर्णता ही जीवन आ सकती है । ज्ञान और क्रिया तथा विचार की संपूर्णता है। और आचार दोनों की परिपूर्णता ही जीवन की संपूर्णता है । धर्म और दर्शन :
भारतीय संस्कृति में विचार और आचार को तथा ज्ञान और क्रिया को जीवन विकास के लिए आवश्यक तत्व माना गया है । दार्शनिक जगत् में एक प्रश्न प्रस्तुत किया जाता है कि धर्म और दर्शन इन दोनों में से जीवन विकास के लिए कौन सा तत्व परम आवश्यक है पाश्चात्य दर्शन में जिसे Religion और Philosophy कहा जाता है । भारतीय परम्परा में उसके लिए प्रायः धर्म और दर्शन का प्रयोग किया जाता है परन्तु मेरे अपने विचार में धर्म शब्द का अर्थ Religion से कहीं अधिक व्यापक एवं गंभीर है, इसी प्रकार दर्शन शब्द का अर्थ Philosophy से कहीं अधिक व्यापक और गंभीर है। पाश्चात्य संस्कृति में धर्म की धारा अलग बहती रही और दर्शन की धारा अलग प्रवाहित होती रही । परन्तु भारतीय संस्कृति में धर्म और दर्शन का यह अलगाव
और विलगाव स्वीकृत नहीं है । “भारत का 'धर्म' दर्शन विहीन नहीं हो सकता और भारत का 'दर्शन' धर्म से विलग नहीं हो सकता।" धर्म और दर्शन के लिए भारतीय संस्कृति में बहुविध और बहुमुखी विचार किया गया है। मानव जीवन को विकसित एवं प्रगतिशील बनाने के लिए श्रद्धा
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