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________________ आश्चर्य है- नाम मात्र की हलचल के बाद, विश्व के बड़े-बड़े राष्ट्र चुप है । इससे भी अधिक आश्चर्य है, उन अहिंसा, दया और करुणा के उद्घोषक धर्म गुरुओं पर, जिनकी दृष्टि में जैसे कुछ हो ही नहीं रहा है । कहाँ है वह अहिंसा, कहाँ है वह करुणा, कहाँ है वह मानवता, जिसके ये सब दावेदार बने हुए हैं ? क्या धर्म मरने के बाद ही समस्याओं का समाधान करता है ? इस धरती पर जीते जी कोई समाधान नहीं है, उसके पास । आज मानव ने दानव का रूप ग्रहण कर लिया है। अहिंसा पर नए सिरे से विचार करने का अवसर आ गया है। लगता है, अहिंसा के पास करने जैसा कुछ नहीं रहा है। वह सब ओर से सिमटकर एक 'नकार' पर खड़ी हो गई है । नकार की अहिंसा में प्राणवत्ता नहीं, वह निर्जीव हो जाती है । अहिंसा का अर्थ अब हिंसा न करना है, वह भी एकांगी, स्थूल दिखावा भर, साथ ही तर्कहीन हैं । जीवनचर्या के कुछ अंग ऐसे हैं, जिसमें से तो अहिंसा जैसा लगता है, किन्तु अगल-बगल की, अन्दर की पृष्ठभूमि में झाँककर देखें, तो हिंसा का नग्न नृत्य होता नजर आता है। दूसरी ओर अहिंसा, हिंसा को सहने भर के लिए हो गई है। बर्बर अत्याचार हो रहा हो, दमन चक्र-चल रहा हो, बेगुनाहों का कत्लेआम हो रह हो और हम अहिंसावादी चुपचाप यह सब सहन करते जाए कि हम कितने साधु पुरुष हैं, कितने क्षमाशील, संयमी हैं। अन्याय एवं अत्याचार : ___ आज अहिंसा, अन्याय एवं अत्याचार के विरोध में अपनी प्रचण्ड प्रतिकार शक्ति खो चुकी है । अहिंसा, हिंसा को केवल सहन करने के 234
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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