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________________ कषायों की आग को सदा के लिए शांत करने साधना की ज्योति | की जरूरत है । क्रोध आदि की वृत्तियों को प्रदीप्त एवं सशक्त | उपशमन तक ही नहीं रखना है, उन्हें क्षय होनी चाहिए, निर्बल करना है । मूल से उखाड़ कर बाहर फेंकना एवं क्षीण नहीं। । है । साधना की ज्योति प्रदीप्त एवं सशक्त an होनी चाहिए, निर्बल एवं क्षीण नहीं । एक बात और है, जिस पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है । वह यह है कि आजकल हमारी साधना पर बाह्य स्थितियों का, बाह्य वातावरण का जो प्रभाव, दबाब व संकोच छाया हुआ है, साधना में जो बाह्य-दृष्टि आ गई है, उसे समाप्त करना होगा । त्याग, वैराग्य और साधना के तर्क एवं मूल्य जो बाह्य केन्द्र पर टिके है, उन्हें अंतःचेतना के केन्द्र पर स्थापित करना होगा, तभी आज की साधना से सम्बन्धित समस्याएँ, शिकायतें और उलझनें समाप्त हो सकेंगी । 204
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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