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________________ उपशम बनाम मूर्छित साँप : किसी पहाड़ी प्रदेश में एक गाँव था। वहाँ एक बालक पहाड़ पर घूम रहा था । रात को बर्फ पड़ी थी, एक साँप रेंगता हुआ बर्फ पर आ गया, तो ठंड के कारण मूर्छित हो गया तथा वहीं सिकुड़ कर ऐसे पड़ा रहा कि जैसे मरा हुआ हो । वह बालक घूमता हुआ उधर आया और बर्फ पर साँप को पड़ा हुआ देखा तो उसने सोचा- यह अच्छा तमाशा बनेगा, घर पर छोटे भाई-बहनों को डराने का मजा आएगा । उसने साँप को उठाया और जेब में डाल लिया । वह साँप को मरा हुआ समझ रहा था, इसलिए उसे कोई भय नहीं था । जंगल में घूम कर कुछ देर बाद घर पर आया, हाथ पैर ठिठुर रहे थे, इसलिए आग के पास बैठकर तापने लगा। आग की गर्मी जेब तक पहुंची, धीरे-धीरे साँप मेंजो ठंड से निश्चेष्ट हो गया था, चेतनता आई । उसने करवट ली और बालक को डस लिया । बालक वहीं समाप्त हो गया । बाहर की ठंड से मूर्च्छित साँप गर्मी पाकर पुनः चैतन्य हो गया और उससे असावधान रहने वाला बालक, जो उससे तमाशा करना चाहता था, बेचारा मर गया । क्रोध, मान, माया, लोभ आदि की ये वृत्तियाँ भी साँप है, जो साधना की शीतलता एवं शान्ति के कारण कभी-कभी मूर्छित-सी हो जाती हैं और हमें लगता है कि वृत्तियाँ मर गयी हैं, क्रोध निर्मूल हो गया है और इसलिए हम उनसे असावधान या बेफिक्र हो जाते हैं । किन्तु वस्तुतः वे वृत्तियाँ मरती नहीं, मूर्छित हो जाती है, क्षीण नहीं, उपशान्त हो जाती हैं और कोई भी निमित्त पाकर पुनः जागृत हो जाती हैं, उद्दीप्त हो उठती हैं और साधक के जीवन को समाप्त कर डालती हैं । 195
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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