________________
इसमें साधक बाहरी दबाव आदि के कारण छल-कपट, दिखावा तो नहीं करता परन्तु वह इतना दुर्बल होता है कि वृत्तियों को नष्ट नहीं कर पाता, दबा देता है । दबी हुई वृत्तियाँ समय पाकर फिर उभर आती हैं । यह साधना का उपशम भाव है ।
__ मैं इस सम्बन्ध में एक उदाहरण आपके समक्ष रखना चाहता हूँ । घर में कूड़ा पड़ा है, बहुत दिन से सफाई नहीं हुई है । अचानक आपका कोई बड़ा रिश्तेदार या मेहमान आ गया तो जल्दी में आप उस कूड़े-कचरे को बाहर नहीं फेंक कर उस पर कोई सुन्दर कपड़ा, चादर या आवरण डाल देते हैं कि मेहमान को यह न लगे कि यहाँ सफाई नहीं है । गन्दगी, कूड़ा-कचरा घर से निकालकर फेंका नहीं गया, बल्कि दबा दिया गया है । कुछ ऐसी ही स्थिति वृत्तियों के उपशमन की भी है ।
दूसरा उदाहरण एक और भी है- एक कांच के ग्लास में आपने मटियाला पानी भरा, पानी में मिट्टी है, आपने उसे एक ओर धीरे से रख दिया तो कुछ ही समय में उसकी मिट्टी नीचे बैठ गई ऊपर से पानी अब बिल्कुल साफ एवं स्वच्छ दिखाई दे रहा है। परन्तु यह स्वच्छता कब तक है ? यदि पानी थोड़ा सा हिल गया तो मिट्टी पूरी पानी में घुल जाएगी
और पानी फिर से मटमैला हो जाएगा । मन की इस प्रकार की वृत्ति उपशम है।
उपशम भाव का अर्थ है- क्रोध, मान, लोभ आदि की जो वृत्तियाँ हैं, वे दबी रहती हैं, भीतर ही भीतर निष्क्रिय रूप से छिपी रहती हैं, उनके ऊपर शांति और सरलता का भाव छाया रहता है, जिससे उसकी ऊष्मा शांत रहती है । किन्तु दबाई हुई वृत्तियाँ कभी शांत नहीं रह सकती । यही कारण है कि उपशम का कालमान/स्थिति अधिक से
193