SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वृत्तियाँ कैसे बदले : अनादि और जन्म-जन्मांतर की चर्चा नहीं करके हम साधना क्षेत्र के इस ज्वलन्त प्रश्न पर विचार कर रहे हैं कि इस प्रवाह को कैसे रोका जाए ? मनुष्य जब साधना के क्षेत्र में बढ़ता है, तब अपने मन के भीतर एक युद्ध प्रारम्भ करता है। उसके अन्तर्मन में एक हलचल शुरू होती है, एक स्पन्दन पैदा होता है । और तब साधना के दो रूप हो जाते हैं । कुछ साधक वृत्तियों को दबाते चले जाते हैं और कुछ साधक वृत्तियों को क्रमशः क्षीण कर उन्हें समाप्त कर देते हैं । वृत्तियों को दबाने का जो क्रम है, वह हमारी शास्त्रीय भाषा में 'उपशम' कहलाता है और समाप्त करने का क्रम 'क्षय' । ___ हम सोचते हैं, क्रोध करेंगे, तो इसका परिणाम क्या होगा ? समाज व परिवार में लोग बुरा कहेंगे, घर में अशान्ति हो जाएगी, शरीर और बुद्धि पर भी इसका बुरा असर होगा । अधिक क्रोध करने से स्मरण-शक्ति दुर्बल हो जाती है, शरीर कमजोर हो जाता है- इस प्रकार का एक भाव हमारे हृदय में जागृत होता है । मैं मानता हूँ, यह जागृति हमारे अन्तःकरण के विवेक की नहीं है । यह बाहरी दबाव, प्रभाव और मोह से पैदा हुई है । हम क्रोध को दबाना चाहते हैं, छुपाना चाहते हैं कि कोई हमें क्रोधी न कहें, हमारे शरीर पर उसका गलत प्रभाव न पड़े। किन्तु भीतर में क्रोध की उष्णता राख में दबी हुई आग की भांति विद्यमान रहती है। राजनीति जीवन का अंग : आपको याद होगा- मैंने एक प्रवचन में कहा था- यदि व्यक्ति 190
SR No.003430
Book TitleAnand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSugal and Damani Chennai
Publication Year2007
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy