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किसी
आने वाले को तो
जाना ही होगा |
मिलने वाले को बिछुड़ना ही होगा ।
किसी
किये, इतने पर भी हाथ से निकल गया तो रोने से क्या होगा ?
और, आश्चर्य के साथ लोगों ने देखा कि उनकी आँखों से एक भी आँसूं नहीं निकला। इसी का नाम है- अनासक्त - योग !
आगरा के रतनलालजी को हम जानते हैं । उनका एक बड़ा होनहार लड़का था, कॉलेज में पढ़ता था । एक दिन वह यमुना में तैरने गया । छलांग लगाई और तैरता रहा । न मालूम क्या हुआ कि तैरते - तैरते डूब गया । खबर लगी और निकाल कर घर लाया गया । उस समय उसकी मामूली - सी सांस चल रही थी । तो आशा के बल पर हजारों रुपये खर्च कर दिए गए, यह सोचकर कि शायद लड़का बच जाए । उस समय वे बूढ़े भी नहीं थे और कोई बड़े दार्शनिक भी नहीं । किन्तु जब लड़का मर गया और नगर के लोग उनके यहाँ गए, तो लौटकर उन्होंने हमसे कहा- हमने अपने जीवन में एक भी ऐसा आदमी नहीं देखा, जो लम्बा-चौड़ा कारोबार करता हो और अपने लड़के को विदेश में भेजने का इरादा कर रहा हो, किन्तु अचानक उसके मर जाने पर एक भी आँसूं न बहाए । वास्तव में, उन्होंने एक भी आँसूं न बहाया - अपने होनहार नौजवान लड़के की मौत पर, उन्होंने कहा - आने वाले को तो जाना ही होगा । मिलने वाले को बिछुड़ना ही होगा । मैं पहले चला जाता या वह पहले चला गया । वह पहले चला गया, तो अपना वश ही क्या है ? तो सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण प्रश्न यही है कि मनुष्य के पास जो कुछ है, उस पर भी उसकी आसक्ति कम से कम हो जाए ।
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