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आज की दुनियाँ में परिग्रह के लिए जो अविश्रान्त दौड़-धूप हो रही है, उसके अन्यान्य कारणों के साथ अनुकरण भी एक मुख्य कारण है । आज धनी बनने की होड लग रही है। प्रत्येक एक-दूसरे से बड़ा एवं धनी बनने की इच्छा रखता है और इसी चाह ने समग्र विश्व को संघर्षों की क्रीड़ा-स्थली बना रखा है। इस चाह ने जैसे व्यक्तिगत जीवन को अशान्त और असन्तुष्ट बना दिया है, उसी प्रकार राष्ट्रों को भी अशान्त और असंतुष्ट बना रखा है। नतीजा जो है, वह प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है। न व्यक्ति सुखी है, न राष्ट्र ही।
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