________________
थी ? यह तो मम्मण सेठ भी समझता होगा, परन्तु मोह ही तो ठहरा । आसक्ति बड़ी विचित्र वस्तु है ।
राजा श्रेणिक ने मम्मण सेठ की हकीकत सुनी और भगवान् महावीर से उसके विषय में पूछा । भगवान् ने कहा- मम्मण सेठ पूर्व जन्म में बहुत गरीब था । एक बार बिरादरी में भोज हुआ और लड्डू बाँटे गए । इसने लड्डू रख लिए । सोचा- भूख लगेगी तब खाऊँगा । जब वह गाँव के बाहर आया और एक जगह तालाब के किनारे खाने को बैठा, तब उसे एक साधु आता दिखाई दिया । उसके जी में आया- आज अच्छा मौका मिल गया है, तो साधु को भी आहार दान हूँ ।
यह सोचकर उसने मुनि को निमन्त्रण दिया और बहुत आग्रह किया । मुनि ने कहा- इच्छा है, तो थोड़ा-सा दे दो । उसने थोड़ा-सा दे दिया और सन्त लेकर चला गया । बाद में वह खुद खाने को बैठा, तो लड्डू बड़ा ही स्वादिष्ट था । लड्डू की उस मिठास ने मुनि को दान देने के उसके रस को बिगाड़ दिया, उसके हर्ष को विषाद के रूप में बदल दिया, उसकी प्रसन्नता को पश्चाताप के रूप में पलट दिया । वह सोचने लगाकहाँ से ये आ गए । इन्हें भी आज ही आना था । यह तो सन्त हैं और इन्हें तो रोज-रोज ही लड्डू मिल सकते हैं । मुझे कौन-से रोज मिलते हैं। इन्हें भी आज ही आने की सूझी, आज तक तो मेरे यहाँ आए नहीं और आए भी तो आज आए, व्यर्थ ही मैंने लड्डू दे दिया ।
___इस प्रकार लड्डू देने के लिये वह पश्चाताप करने लगा। उसने पापानुबन्धी पुण्य बांध लिया और उसी का यह परिणाम है कि लक्ष्मी पा करके भी वह सत्कार्यों में खर्च नहीं कर सकता ! पापानुबन्धी पुण्य का बन्ध करने वाला मनुष्य आगे चल कर धन के बन्धन में बंध जाता है
134